बड़ा शहर ऊंची इमारातें
शान से सर ऊंचा किये
आसमान से बातें करतीं
अपने ऊपर गर्व करतीं |
दूर से वह निहारती
ऊँचाई और बुलंदी उनकी
तोलती खुद को उनसे
कहीं कम तो नहीं सबसे |
खुद को सब से ऊपर पा
गुमान से भर उठती
प्रसन्नवदना उड़ती फिरती
बंधन विहीन आकाश में |
दिग्भ्रमित होती जब भी
खोज ही लेती सही राह
और खो जाती फिर से
और खो जाती फिर से
स्वप्नों की दुनिया में|
खुद का अस्तित्व खोजने में
ठोस धरातल पर जैसे ही
धरती अपने कदम
सारे स्वप्न बिखर जाते |
उनका विखंडन
बिखरे अंशों का आकलन
पश्चाताप से दुखित मन
उसे कहीं का न छोड़ता
जीवन का सत्व स्पष्ट होता
आशा