बड़ा शहर ऊंची इमारातें
शान से सर ऊंचा किये
आसमान से बातें करतीं
अपने ऊपर गर्व करतीं |
दूर से वह निहारती
ऊँचाई और बुलंदी उनकी
तोलती खुद को उनसे
कहीं कम तो नहीं सबसे |
खुद को सब से ऊपर पा
गुमान से भर उठती
प्रसन्नवदना उड़ती फिरती
बंधन विहीन आकाश में |
दिग्भ्रमित होती जब भी
खोज ही लेती सही राह
और खो जाती फिर से
और खो जाती फिर से
स्वप्नों की दुनिया में|
खुद का अस्तित्व खोजने में
ठोस धरातल पर जैसे ही
धरती अपने कदम
सारे स्वप्न बिखर जाते |
उनका विखंडन
बिखरे अंशों का आकलन
पश्चाताप से दुखित मन
उसे कहीं का न छोड़ता
जीवन का सत्व स्पष्ट होता
आशा
आदरेया ये दो शब्द स्पष्ट नहीं हो रहे-
जवाब देंहटाएंइमातारें , पश्च्याताप
सुन्दर प्रस्तुति ||
सादर -
रविकर जी बड़े शहर में पहुँच कर एक सामान्य बाला अपना आकलन करना चाहती है और वहीं स्थापित होना चाहती है इस लिए उन ऊंची इमारतों से खुद की तुलना कर रही है|स्वप्नों की दुनिया से बाहर आते ही उसे पश्च्याताप होता है अपनी भूल का अहसास होता है पर वह बापिस भी नहीं लौट पाती |
जवाब देंहटाएंआशा
ऊँची उड़ान भरने वाले जब नीचे गिरते हैं ,उनकी अस्तित्व ही मीट जाती है ,
जवाब देंहटाएंजी आदरेया-
जवाब देंहटाएंइमातारें शब्द इमारतें का समानार्थी है क्या-
पश्च्याताप = पश्चाताप तो स्पष्ट है-
सादर आदरेया-
बिखरे अंशों का आकलन
जवाब देंहटाएंपश्च्याताप से दुखित मन
उसे कहीं का न छोड़ता
जीवन व्यर्थ सा लगता |very nice.....
रविकर जी गलत टाइप होने के कारण इमारतें शब्द इमातारे हो गया था सही करवाने के लिए बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
sundar sarthak aur vicharniy prastuti
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना आशा जी .
जवाब देंहटाएंसाभार ....
आपकी सोच और दूरदृष्टि को सलाम ! सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंपंख फैलाके अम्बर पे इतराए जो वो गिरे गिर के सपनो से बिखरे वही ...हर जगह होड़ मची है ..सुंदर रचना..सादर प्रणाम के
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति,आभार आदरेया.
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