12 मार्च, 2011

मेरी आँखों में बस गया है



मेरी आँखों में बस गया है
वह प्यारा सा भोला चेहरा
जो चाहता था ऊपर आना
पर चढ़ नहीं पाता था |
अपनीं दौनों बाहें पसार
लगा रहा था गुहार
जल्दी से नीचे आओ
मुझे भी ऊपर आना है
अपने साथ ले कर जाओ |
सूरज के संग खेलूंगा
चिड़ियों से दोस्ती करूँगा
दाना उन्हें खिलाऊंगा
फिर अपने घर ले जाऊंगा |
जब में बक्सा खोलूँगा
खिलौनों की दूकान लगा दूंगा
जो भी उन्हें पसंद होगा
वे सब उन्हें दे दूंगा |
उसकी भोली भाली बातें
दया भाव और दान प्रवृत्ति
देख लगा बहुत अपना सा
एक भूले बिसरे सपने सा |
वह समूह में रहना जानता है
पर उसकी है एक समस्या
अकेलापन उसे खलता है
घर में नितांत अकेला है |
माँ बापू की है मजबूरी
उस पर ध्यान न दे पाते
उसे पडोस में छोड़ जाते
जब भी वह देखता है
अपने पास बुलाता है |
अब तो खेल सा हो गया है
टकटकी लगा मैं
उसका इन्तजार करती हूँ
जैसे ही दीखता है
गोद में उठा लेती हूँ |
उसके चेहरे पर
भाव संतुष्टि का होता है
उस पर अधिक ही
प्यार आता है |
आशा





11 मार्च, 2011

वह खेलती होली


खेतों में झूमती बालियाँ गेहूं की
फूलों से लदी डालियाँ पलाश की
मद मस्त बयार संग चुहल उनकी
लो आ गया मौसम फागुन का |
महुए के गदराय फल
और मादक महक उनकी
भालू तक उन्हें खा कर
झूमते झामते चलते |

किंशुक अधरों का रंग लाल
गालों पर उड़ता गुलाल
हो जाते जब सुर्ख लाल
लगती है वह बेमिसाल |
चौबारे में उडती सुगंध
मधु मय ऋतु की उठी तरंग
मनचाहा पा हो गयी अनंग
गुनगुनाने लगी फाग आज |
भाषा मधुर मीठे बोल
चंचल चितवन दिल रख दे खोल
अपने रसिया संग
आज क्यूँ ना खेले फाग |
मन को छूती स्वर लहरी
और फाग का अपना अंदाज
नाचते समूह चंग के संग
रंग से हो सराबोर |
वह भीग जाती प्रेम रंग में
रंग भी ऐसा जो कभी न उतारे
तन मन की सुध भी बिसरा दे
वह खेलती होली
रसिया मन बसिया के संग |

आशा





10 मार्च, 2011

दंश का दर्द

कच्ची सड़क पर लगे पैर में कंटक
निकाल भी लिए
जो दर्द हुआ सह भी लिया |
पर हृदय में चुभे
शूल को निकालूँ कैसे
उसके दंश से बचूं कैसे |
जब हो असह्य वेदना
बहते आंसुओं के सैलाव को
रोकूं कैसे |
इस दंश का दर्द
जीवन पर्यन्त होना है
कैसे मुक्ति पाऊं उससे |
बिना हुए चोटिल
दोधारी तलवार पर चलना
और बच पाना उससे
होता है बहुत कठिन
पर असम्भव भी नहीं |
शायद वह भी सहन कर पाऊं
धरा सा धीरज रख पाऊं
और मुक्ति मार्ग पर चल पाऊं
बिना कोई तनाव लिए |

आशा

09 मार्च, 2011

तलाश


खोने लगी हूँ सपनों की दुनिया में
अपने आप में अदृश्य की तलाश में
कल्पना सजग हुई है
मन का कौना तलाशती है |
हो एक अज्ञात कल्पना
स्वप्न लोक का हो विस्तार
आस पास बुने जाल में
हो छिपी भावनाओं का स्पन्दन |
अदृश्य अहसास की छुअन
सानिध्य की लगन
लगता है स्त्रोत कल्पना का
जो हैअसीम है अक्षय
अनंत है विस्तार जिसका |
खोज रही हूँ पहुँच मार्ग
स्त्रोत तक जाने के लिए
जैसे ही पहचान लूंगी
निर्वाध गति से आगे बढूगी
अदृश्य सत्य को साकार पा
आकांक्षा पूरी करूंगी |

आशा