11 मार्च, 2011

वह खेलती होली


खेतों में झूमती बालियाँ गेहूं की
फूलों से लदी डालियाँ पलाश की
मद मस्त बयार संग चुहल उनकी
लो आ गया मौसम फागुन का |
महुए के गदराय फल
और मादक महक उनकी
भालू तक उन्हें खा कर
झूमते झामते चलते |

किंशुक अधरों का रंग लाल
गालों पर उड़ता गुलाल
हो जाते जब सुर्ख लाल
लगती है वह बेमिसाल |
चौबारे में उडती सुगंध
मधु मय ऋतु की उठी तरंग
मनचाहा पा हो गयी अनंग
गुनगुनाने लगी फाग आज |
भाषा मधुर मीठे बोल
चंचल चितवन दिल रख दे खोल
अपने रसिया संग
आज क्यूँ ना खेले फाग |
मन को छूती स्वर लहरी
और फाग का अपना अंदाज
नाचते समूह चंग के संग
रंग से हो सराबोर |
वह भीग जाती प्रेम रंग में
रंग भी ऐसा जो कभी न उतारे
तन मन की सुध भी बिसरा दे
वह खेलती होली
रसिया मन बसिया के संग |

आशा





9 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह आपने तो होली का माहौल ही रच कर रख दिया ! रसिया मन बसिया के संग होली खेलने का आनंद ही कुछ और है ! बहुत सुन्दर !इस फागुनी रचना के लिये आभार एवं शुभकामनायें !

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  2. बहुत सुंदर रचना -
    हलिमय हो गया मन -
    फागुन के दिन चार रे -
    होली खेल मना रे -
    शुभकामनाएं.

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  3. टेसू के रंगों से सजी रंगीली कविता|

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  4. आपने तो सुनहरे रंग की होली सजा रखी है आज की सुन्दर रचना में!

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  5. बहुत सुन्दर ! आपकी कविता में बसंत लहलहा रहा है !

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  6. अब यकीन हो गया की होली आगई है ... आभार इस सुंदर रचना के लिए .. :)

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  7. आदरणीय आशा दी ,
    बहुत सारे रंगों की अनुपम छटा सजा दी आपने ....

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  8. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार
    हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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