खेतों में झूमती बालियाँ गेहूं की
फूलों से लदी डालियाँ पलाश की
मद मस्त बयार संग चुहल उनकी
लो आ गया मौसम फागुन का |
महुए के गदराय फल
और मादक महक उनकी
भालू तक उन्हें खा कर
झूमते झामते चलते |
किंशुक अधरों का रंग लाल
गालों पर उड़ता गुलाल
हो जाते जब सुर्ख लाल
लगती है वह बेमिसाल |चौबारे में उडती सुगंध
मधु मय ऋतु की उठी तरंग
मनचाहा पा हो गयी अनंग
गुनगुनाने लगी फाग आज |
भाषा मधुर मीठे बोल
चंचल चितवन दिल रख दे खोल
अपने रसिया संग
आज क्यूँ ना खेले फाग |
मन को छूती स्वर लहरी
और फाग का अपना अंदाज
नाचते समूह चंग के संग
रंग से हो सराबोर |
वह भीग जाती प्रेम रंग में
रंग भी ऐसा जो कभी न उतारे
तन मन की सुध भी बिसरा दे
वह खेलती होली
रसिया मन बसिया के संग |
आशा
अरे वाह आपने तो होली का माहौल ही रच कर रख दिया ! रसिया मन बसिया के संग होली खेलने का आनंद ही कुछ और है ! बहुत सुन्दर !इस फागुनी रचना के लिये आभार एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंफागुन की फुहार जैसी रचना ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना -
जवाब देंहटाएंहलिमय हो गया मन -
फागुन के दिन चार रे -
होली खेल मना रे -
शुभकामनाएं.
टेसू के रंगों से सजी रंगीली कविता|
जवाब देंहटाएंआपने तो सुनहरे रंग की होली सजा रखी है आज की सुन्दर रचना में!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! आपकी कविता में बसंत लहलहा रहा है !
जवाब देंहटाएंअब यकीन हो गया की होली आगई है ... आभार इस सुंदर रचना के लिए .. :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा दी ,
जवाब देंहटाएंबहुत सारे रंगों की अनुपम छटा सजा दी आपने ....
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।