25 सितंबर, 2021

रिश्ते एकतरफा नहीं


 

 

रिश्ते कभी एकतरफा नहीं होते

सम्बन्ध निभाना पड़ते हैं

उन्हें  बनाना  है फिर भी सरल

पर  कठिन है  निभाना उन्हें |

बहुत दूर तक  जीवन पर्यंत

वैसे ही रख रखाव  रिश्तों का  

प्यार की कमीं  न होने देना

है यही सफल संबंधों का प्रतिफल |

अभी बने हाल ही टूटें

स्थाईत्व जिनमें न हो तनिक भी

होते ऐसे रिश्ते अस्थाई होते  

अकारण न बनए जाते |

मतलब से बनाएगे गए रिश्तों की

कोई अहमियत नहीं होती 

जब हल हो जाए समस्या

तभी कहा जाता हैआप कौन |

हम पहचानते नहीं आप को

कहाँ मिले थे याद नहीं है

कब मिले किस कारण मिले

यह तक  याद नहीं हम को |

खून के रिश्ते भी कभी डगमगाने लगते

तब बनाए रिश्तों में दम कितना होगा

एक झटके में विलुप्त हो जाएंगे

समय न लगेगा टूटने में |

आशा 















 

 

 

 

 

 

 

 

 

24 सितंबर, 2021

वर्ण पिरामिड


 

है

मेरी  

चाहत

अपनी ही

तुम्हारी  नहीं

 स्वप्नों में सजी है    

ख्यालों में बसी रहे 

या विलुप्त होने लगे 

नहीं है  दरकार मुझे  |

ओ 

चन्दा 

चमको 

आधी रात 

तारों के साथ 

मुझे भाने लगा

रहना तेरे साथ 

रात भर तारे गिनूं 

भोर होते ही उठ जाऊं |

हे 

कान्हां 

तुम्हारी 

अनुरागी 

भक्ति भाव से 

करूं  आराधन 

तन मन धन  से 

 दिन में भोग लगाऊँ 

 करो पूरी  मेरी कामना | 

आशा  






23 सितंबर, 2021

जाना उस देश


 

 

 

 

 

 

 


 ओ वर्षा के पहले बादल

                       काले कजरारे भूरे बादल

तुम जाना काली दास की नगरी में  

जहां से मैं आया हूँ  |

मालव प्रदेश मुझे ऐसा भाया

जिसे मैं भूल न पाया

वहां के दृश्य मनोरम

 है हरियाली चहु ओर |

जब उस प्रदेश से गुजरोगे

मंद  गति से बहती पवन

सहलाएगी तन मन

सुहाना मौसम करेगा आकृष्ट तुम्हें भी |

चाहोगे अपना बसेरा बनाना  वहां

अवन्तिका में क्षिप्रा स्नान कर देव दर्शन करोगे  

महाकाल दर्शनार्थ पहुँचते लोग मिलेंगे  

पक्षी कलरव करते होंगे प्रातःकाल की बेला में |

 रवि रश्मियाँ अंगड़ाइयां ले कर

जागेंगी अपनी आभा बिखेरेंगी

सातों रंग भरेंगी प्रकृति में

मन मोहक छवि उभरेगी नयनों में |

रात में लुकाछिपी चंद्र और तारों से   

नदिया के जल से क्रीड़ा करेंगी

दिन में राह दिखाएंगी आदित्य को

जो निकलता होगा देशाटन को |

आशा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

22 सितंबर, 2021

वह चली गई


 

वह चली गई ना रुकी   

 न रुकना चाहा

ना ही रोकने का मन बनाया  

कारण कैसे बताता

मेरा  मन ही बैरी हुआ |

न जाने कब से उलझनें

 डेरा जमाए बैठी थीं यहाँ

जब तक दूर न होतीं

क्या फ़ायदा बहस में फंसने का |

सोचा जब मामला ठंडा होगा

तभी बात करना उचित होगा

यही सोच कर उसे न रोका

प्यार में व्यवधान न आए 

 यही विचार रहा  मन में |

चोट गर्म लोहे पर पड़े

यह भी तो ठीक नहीं 

ठंडी होते ही बात बन जाएगी

मेरा सोच यही था  |

आशा

 

21 सितंबर, 2021

मेरा अस्तित्व


 

समय हाथों से

फिसल रहा

सिक्ता कणों सा

मैं खोजती रही उसे भी  |

पर  खोज अधूरी  रही

उसे तो खोया ही

खुद का वजूद

भी न मिला |

जाने कैसे वह भी

मुझसे मुंह मोड़ चला

कुछ तो खता रही होगी  

उसने मुझे क्यों छोड़ा ?

समय तो गैर  था

पर हाथों के बंधन से

 बंधा था तभी गया 

बंधन ढीले  होते ही |

फिर भी खुद के

अस्तित्व से

 यह आशा न थी 

कभी वह भी धोखा दे जाएगा  |

  हुआ मन अशांत

भरोसा तोड़ दौनों  ने

 मझधार में छोड़ा |

 समय के साथ जा कर

जाने कहाँ विलीन हुआ  

खुद ने ही धोखा खाया  

 अपने अस्तित्व को खो कर |

बदला मौसम


 

दिल बहका मन महका

झुकी डालियाँ देखीं जब फुलवारी में

फलते फूलते पुष्पों से भरी

पुष्पों के भार से दबी उन टहनियों में   |

प्रातः काल की बेला में जब

मंद वायु के झोंकों ने

उन्हें जगाया  झझकोर कर

 झुलाया मन से बहुत स्नेह से |

आदित्य की रश्मियों ने धीरे से

सहलाया अधखिले फूलों को

कब प्रस्फुटित हुए वे  जान न पाए

 लम्हां था हसीन यादों में सिमटा |

अब नित्य  का नियम बन गया  

उस बगिया में  भ्रमण को जाने का 

खिलते पुष्पों के संग मंद वायु में

खिलखिलाने का सूर्योदय का आनंद उठाने का  |

एक दिवस तेज हवा का झोका आया

उसने पूरी क्षमता से डालियों को हिलाया

वायु के वार वे सह न सकीं

फूल झरने लगे वे सूनी होने लगीं |

अब वीरान हुई बगिया

 तितली भ्रमर पुष्प नहीं थे  

मनोरम न लगे हरियाली बिना दृश्य वहां के

सूनी हुई बगिया  बिना रंगबिरंगे  पुष्पों के |

सूखे पत्तों का साम्राज्य हुआ बागीचे में

अब शबनमी मोती कहाँ  हरी पत्तियों पर

ना ही रश्मियों की लुकाछिपी होती रही ओस से

फिर भी थी हरियाली गुलमोहर के वृक्ष पर |

हो प्रकृति से दूर भ्रमण में आनंद न आया

मौसम के बदलाव ने मन को कष्ट पहुंचाया  

पर सब मौसम परिवर्तन के नियम से बंधे थे

कुछ भी हाथ में न था मौसम बदल रहा था |

आशा

20 सितंबर, 2021

हिन्दी (हाइकु )


१-हिंदी की बिंदी 

चमके भाल पर

हिन्द की शान

२-पखवाड़ा है

हिंदी की समृद्धि का

बनाया स्थान 

३-बौध गम्य है

सरल बोलने में 

समझे सब

४-हम हैं हिंदी

 समर्द्ध हुई हिन्दी 

साहित्य से 

५- हिंदी हमारी  

कोई तुलना नहीं 

राष्ट्र भाषा से   

६- हम भारती 

हिन्द देश के वासी

बोलते हिन्दी

७-शब्द दूसरे  

दूध से  समा जाते 

जल में मिल 

  

आशा  

  बिंदी

19 सितंबर, 2021

हार न मानी कभी


 


 हार न मानी कभी 

कितनी भी कठिनाई आई

डट कर सामना किया  

मोर्चे से नहीं  भागा |

मन पर पूरा नियंत्रण

जाने कब से रखा है

 हर कदम पर सफल रहा हूँ

तिथि तक याद नहीं है अब तो |

कभी भरोसा था अन्यों पर

कंधे पर सर रखा था

मन को सांत्वना देने को

वह भी खोखला निकला |

पर अब पश्च्याताप नहीं

खुद ही इतना हूँ सक्षम 

है तुम पर ही विश्वास

तुम्ही तारणहार मेरी नैया के |

तुम्ही हो खिवैया नैया के बीच मझधार में

मेरा बेड़ा पार लगाओ हे कर्तार

मेरी आस्था कभी न डगमगाए

हो बेड़ा पार इस विशाल भवसागर से  |

 आशा 


गणेश (हाइकु )

 

१-


१- था इन्तजार

पिछले वर्ष ही से

 गणनायक

२- आते ही  चले

गणेश जी जल्दी से

 विसर्जन में   

३- प्रथम पूज्य

सब के दुःख  हरते

 हो  गणपति

४- हो सर्बोपरी 

तुमसा न कोई है

विघ्न हरता

५- आए थे जब

खुशी कितनी रही 

उदासी अब 

६- नमन तुम्हें

हे सिद्धि विनायक 

दुःख हरता   

७-उदासी अब 

किससे बांटी जाए 

खाली मंदिर

आशा 











 उदासी अब