19 सितंबर, 2021

हार न मानी कभी


 


 हार न मानी कभी 

कितनी भी कठिनाई आई

डट कर सामना किया  

मोर्चे से नहीं  भागा |

मन पर पूरा नियंत्रण

जाने कब से रखा है

 हर कदम पर सफल रहा हूँ

तिथि तक याद नहीं है अब तो |

कभी भरोसा था अन्यों पर

कंधे पर सर रखा था

मन को सांत्वना देने को

वह भी खोखला निकला |

पर अब पश्च्याताप नहीं

खुद ही इतना हूँ सक्षम 

है तुम पर ही विश्वास

तुम्ही तारणहार मेरी नैया के |

तुम्ही हो खिवैया नैया के बीच मझधार में

मेरा बेड़ा पार लगाओ हे कर्तार

मेरी आस्था कभी न डगमगाए

हो बेड़ा पार इस विशाल भवसागर से  |

 आशा 


7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२०-०९-२०२१) को
    'हिन्दी पखवाड़ा'(चर्चा अंक-४१९३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. वाह ! बहुत खूब ! इतना भरोसा तो होना ही चाहिए खुद पर !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    धन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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