05 मार्च, 2011

नारी


माँ के आँचल में पली बढी
आँगन में पनपी तुलसी सी
नन्हीं बाहें फैला कर
अस्तित्व बनाया अपना भी|
मधुरस से मीठे बोलों से
चहकी मधु बयनी मैना सी
हो गयी घर में रौनक
वह बढ़ने लगी वल्लरी सी |
छिपे गुण प्रस्फुटित हुए
वय बढ़ने के साथ
उत्साह भी कम नहीं
है ललक बहुत कुछ करने की |
सहनशील है, अनुशासित है
कर्तव्य बोध गहरा उसमें
कर्मठ है, जुझारू है
रहती व्यस्त कई कार्यों में |
इतने से जीवन काल में
कई भूमिका निभाती है
बेटी बहिन माँ बन कर
सब का मन हर लेती है |
प्रेयसी या अभिसारिका होती
बन जीवन संगिनी मन में बसती
कार्य कुशलता की धनी है
बाहर भी जंग जीत लेती |
वह अबला ऩही है
कर्त्तव्य अपने जानती है
विमुख नहीं अधिकारों से भी
उन्हें खोना नहीं चाहती |
इसी लिए दौड़ रही है
आज के व्यस्त जीवन में
बराबरी से चल रही है
स्पर्धा की दुनिया में |

आशा


04 मार्च, 2011

कच्ची उम्र सुनहरे सपने

सुन्दर गुमसुम गुड़िया सी
छवि उसकी आकर्षित करती
कोई कमी उसमें ना देखी
आत्म विश्वास से भरी रहती |
सोचती है समझती है
पर सच सुनना नहीं चाहती
मन में छुपे कई राजों को
किसी से बाँटना नहीं चाहती |
कच्ची उम्र सुनहरे सपने
हर पल सपनों में ही जीती
रहती ककून में बंद
रेशम के कीड़े सी |
अपने को किया
सीमित जालक में
अंतर्द्वंद में घिरी हुई वह
आत्मकेंद्रित हो गयी है |
है उम्र ही कुछ ऐसी
खोई रह्ती कल्पनाओं में
सत्य नहीं जान पाती
है कौन अपना पहचान नहीं पाती |
मुखौटे के है पीछे क्या
यही अगर पहचान पाती
भेद पराये अपने का
स्पष्ट उसे नजर आता |
जो निखार व्यक्तित्व का
था अपेक्षित उससे
होने लगा है अवरुद्ध सा
यह भी वह समझ पाती |
सब बोझ समझ बैठे उसको
यह भूल गये
वे भी कभी गुजरे होंगे
कच्ची उम्र के इस दौर से |
पैर यदि बहकने भी लगे
दिवा स्वप्नों से
अपने आप सम्हल जायेंगे
यह दौर भी गुजर जायेगा |
ठहराव व्यक्तित्व में होगा
और सफलता कदमों में
योग्यता उसकी रंग लायेगी
वह पिछड़ नहीं पायेगी |

आशा










01 मार्च, 2011

बादल


पक्षियों से पंख फैला
आपस में मिलने की आस ले
नीलाम्बर में आते बादल
इधर उधर जाते बादल|
काले भूरे और श्वेत
तरह तरह के होते बादल

जब भी दृष्टि पड़ती उन पर
बहुत सुखद लगते बादल
मन भीग भीग जाता
देख कर सुनहरे बादल |
बादल होते रमता जोगी
स्थिर नहीं रह पाते
इधर उधर भटकते रहते
एक जगह ना रुक पाते |
लगते हेँ सन्देश वाहक से
जो दे सन्देश आगे बढते
जहां से भी चल देते
बापिस नहीं लौट पाते|
है एक बात और उनमें
कभी प्यासी धरती की
तो कभी प्यासे चातक की
प्यास बुझाना नहीं भूलते
प्यासे को पानी देते
हरी भरी
धरती करते |
होते हैं जब भी क्रोधित
करते घोर गर्जन तर्जन
अंदर की आग दर्शाने को
लेते सहारा दामिनी का
विचारक दौनों रूपों को
देखता है सम दृष्टि से
सोचता है मनन करता है
उसे लगता मनुष्य जीवन भी
आते जाते बादल सा |
जीवन भी आगे बढ़ता है
पीछे लौट नहीं पाता
केवल यादे रह जाती हैं
वह दुनिया छोड़ चला जाता |

आशा










28 फ़रवरी, 2011

मन

ना कोई सीमा ना कोई बंधन
उड़ता फिरता मन हो अनंग ,
होता उसका विस्तार
गहन गंभीर जल निधि सा |
है बहुत सूक्ष्म पर बहु आयामी
सिलसिला विचारों का
रुकने का नाम नहीं लेता
अंत उनका नहीं होता |
मन है अंत हीन आकाश सा
गहन गंभीर धरती सा
कभी उड़ते पक्षी सा
तो कभी मोम सा |
विचरण करता केशर क्यारी में
वन उपवन की हरियाली में
कभी उदासी घर कर जाती
भटकता फिरता निर्जन वन में |
चंचल चपल संगिनी तक
प्रेम की पराकाष्ठा तक जा
विचार ठहर नहीं पाता
चंचल मन को कोई भूल नहीं पाता |
ठहराव यदि आया विचार नहीं रहता
तिरोहित हो जाता है
छिप जाता है
सृष्टि के किसी अनछुए पहलू में |

आशा