01 मार्च, 2011

बादल


पक्षियों से पंख फैला
आपस में मिलने की आस ले
नीलाम्बर में आते बादल
इधर उधर जाते बादल|
काले भूरे और श्वेत
तरह तरह के होते बादल

जब भी दृष्टि पड़ती उन पर
बहुत सुखद लगते बादल
मन भीग भीग जाता
देख कर सुनहरे बादल |
बादल होते रमता जोगी
स्थिर नहीं रह पाते
इधर उधर भटकते रहते
एक जगह ना रुक पाते |
लगते हेँ सन्देश वाहक से
जो दे सन्देश आगे बढते
जहां से भी चल देते
बापिस नहीं लौट पाते|
है एक बात और उनमें
कभी प्यासी धरती की
तो कभी प्यासे चातक की
प्यास बुझाना नहीं भूलते
प्यासे को पानी देते
हरी भरी
धरती करते |
होते हैं जब भी क्रोधित
करते घोर गर्जन तर्जन
अंदर की आग दर्शाने को
लेते सहारा दामिनी का
विचारक दौनों रूपों को
देखता है सम दृष्टि से
सोचता है मनन करता है
उसे लगता मनुष्य जीवन भी
आते जाते बादल सा |
जीवन भी आगे बढ़ता है
पीछे लौट नहीं पाता
केवल यादे रह जाती हैं
वह दुनिया छोड़ चला जाता |

आशा










6 टिप्‍पणियां:

  1. Badal ka chitran sargarbhit hai.ASHA JI AAPKI LEKHNI ME BAHUT TAKAT HAI...Likhte rahiye

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  2. बादलों को व्याख्यायित करती बहुत बढ़िया रचना ! बहुत सुन्दर ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  3. आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा बहुत कुछ है जो में आपसे सिख सकता हु और भुत कुछ रोचक भी है में ब्लॉग का नया सदस्य हु असा करता हु अप्प भी मेरे ब्लॉग पे पदारने की क्रप्या करेंगे कुछ मुझे भी बताएँगे जो में भी अपने ब्लॉग में परिवर्तन कर सकूँगा में अपना लिंक निचे दे रहा हु आप देख सकते है
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    धन्यवाद्
    दिनेश पीक

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  4. मन भी कुछ- कुछ बादल सा ही होता है,
    आप के भावो में सरसता है |

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  5. बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने कविताओं के लिए..

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  6. आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

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