31 दिसंबर, 2010

कल जब सुबह होगी


आप सब को नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनायें |
कल जब सुबह होगी
एक वर्ष बाद आँखें खुलेंगी
रात भर में ही
पूरा वर्ष बीत जायेगा
क्योंकि इस वर्ष सोओगे
और कल होगा अगला वर्ष 
जब मंद-मंद मुस्कान लिए
उदित होते सूरज की
प्रथम किरण निहारोगे
अरुणिमा से आच्छादित आकाश
और मखमली धूप का अहसास
सब कुछ नया-नया होगा
क्योंकि नये वर्ष का स्वागत करोगे
संजोये स्वप्नों की उड़ानें
जो पूर्ण नहीं हो पाईं पहले
साकार उन्हें करने के लिए
खुद से कई वादे करोगे
आज रात नाचो गाओ
नव वर्ष के स्वागतार्थ
मन में होते स्पंदन का
खुल कर इज़हार करो
वैसे भी तुम्हें था कब से इन्तजार
आज की रात का
कल के प्रभात का ,
और नए सन् के प्रारम्भ का
नाचो गाओ खुशियाँ बाँटो
बीते कल को अलविदा कहो
आने वाले नये दिन का
दिल खोल स्वागत करो |


आशा

30 दिसंबर, 2010

एक वर्ष और बीत गया


एक वर्ष और बीत गया
कुछ भी नया नहीं हुआ
हर बार की तरह इस वर्ष भी
नया साल मनाया था
रंगारंग कार्यक्रमों से सजाया था
खुशियाँ बाँटी थीं सब को
कठिन स्थितियों से जूझने की
बीती बातें भुलाने की
कसमें भी खाई थीं
पर पूरा साल बीत गया
कोई परिवर्तन नहीं हुआ
ना तो समाज में, ना ही देश में
ओर ना ही प्रदेश में
एक ही उदाहरण काफी है
प्रगति के आकलन के लिए
सड़कों पर डम्बर डाला था
कुछ नई भी बनाईं थीं
बहुत कार्य हुआ है
बार-बार कहा गया था
एक बार की वर्षा में ही
सारा डम्बर उखड़ गया
रह गए बस ऊबड़ खाबड़ रास्ते
गड्ढे उनपर इतने कि
चलना भी दूभर होगया
महँगाई की मार ने
भ्रष्टाचार और अनाचार ने
सारी सीमाएं पार कीं
जीना कठिन से कठिनतर हुआ
पर स्वचालित यंत्र की तरह
आने वाले कल का स्वागत कर
औपचारिकता भी निभानी है !


आशा

29 दिसंबर, 2010

दुनिया एक छलावा है


हूँ एक ऐसा अभागा 
दुनिया ने ठुकराया जिसे
वे भी अपने न हुए
विश्वास था जिन पर कभी
सफलता कभी हाथ नहीं आई
असफलता ने ही माथा चूमा
साया तक साथ छोड़ गया
तपती धूप में जब खड़ा पाया
कभी सोचा है  भाग्य ही खराब 
हर असफलता पर कोसा उसे
जो दुनिया रास नहीं आई
बार-बार धिक्कारा उसे
मेरी बदनसीबी पर
चन्द्रमा तक रोया
प्रातः काल उठते ही
पत्तियों पर आँसू उसके दिखे
चाँदनी तक भरती सिसकियाँ
बादलों की ओट से
फिर भी जी रहा हूँ
ले लगन ओर विश्वास साथ
साहस अभी भी बाकी है
आशा की किरण देती  दिखाई 
सफल भी होना चाहां 
पर इतना अवश्य जान गया हूँ
है दुनिया एक छलावा
वह किसी की नहीं होती
जब भी बुरा समय आये
वह साथ नहीं देती |


आशा

28 दिसंबर, 2010

एक विचार मन में आया

देख प्रकृति की छटा
खोया-खोया उसमें ही
जा रहा था अपनी धुन में
ध्यान गया उस पीपल पर
था अनोखा दृश्य वहाँ
 खड़खड़ा रहे थे पत्ते
आपस में बतिया रहे थे
मंद पवन को संग ले
आकाश में उड़ना चाह रहे थे
हरे रंग के कुछ पक्षी
यहाँ वहाँ उड़-उड़ कर
पीपल के फल खाते
पहले सोचा तोते होंगे
पर उत्सुकता ने ली अंगड़ाई
छुपता छुपाता आगे बढ़ा
दुबका एक झाड़ी की आड़ में
अब  था दृश्य बहुत साफ
वे तोते नहीं थे
लगते थे कबूतर से
पर कबूतर नहीं थे
वे हरे थे
एक डाल से दूसरी पर जाते
शांत बैठना मनहीं जानते
पीली चोंच, पीले पंजे
उन्हें विशिष्ट बना रहे थे
मैं अचम्भित टकटकी लगा
उनके करतब देख रहा था
निकट के जल स्त्रोत पर
झुकी डाल पर बैठ-बैठ
गर्दन झुका जल पी तृप्त हो
पत्तियों में ऐसे छुपे
मानो वहाँ कोई न हो
 एक व्यक्ति जब  निकला 
वृक्ष के नीचे से
सारे पक्षी उड़ गये
रोका उसे और पूछ लिया
थे ये कौन से पक्षी
लगते जो कबूतर से
पर रंग भिन्न उनसे
उसने ही बताया मुझे
ये वृक्ष पर ही रहते हैं
वही है बसेरा उनका
मुड़े हुए पंजे होने से
धरती पर चल नहीं पाते
हरे रंग के हैं
हरियाल उन्हें कहते हैं  (ग्रीन पिजन )
वह तो चला गया
मैं सोचता रह गया
प्रकृति की अनोखी कृति
उन पक्षियों के बारे में
तभी एक विचार मन में आया
मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन नहीं है
पक्षी भी भय खाते उससे
तभी तो उसे देख
उससे किनारा कर लेते हैं
शरण आकाश की लेते हैं |


आशा