31 दिसंबर, 2010

कल जब सुबह होगी


आप सब को नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनायें |
कल जब सुबह होगी
एक वर्ष बाद आँखें खुलेंगी
रात भर में ही
पूरा वर्ष बीत जायेगा
क्योंकि इस वर्ष सोओगे
और कल होगा अगला वर्ष 
जब मंद-मंद मुस्कान लिए
उदित होते सूरज की
प्रथम किरण निहारोगे
अरुणिमा से आच्छादित आकाश
और मखमली धूप का अहसास
सब कुछ नया-नया होगा
क्योंकि नये वर्ष का स्वागत करोगे
संजोये स्वप्नों की उड़ानें
जो पूर्ण नहीं हो पाईं पहले
साकार उन्हें करने के लिए
खुद से कई वादे करोगे
आज रात नाचो गाओ
नव वर्ष के स्वागतार्थ
मन में होते स्पंदन का
खुल कर इज़हार करो
वैसे भी तुम्हें था कब से इन्तजार
आज की रात का
कल के प्रभात का ,
और नए सन् के प्रारम्भ का
नाचो गाओ खुशियाँ बाँटो
बीते कल को अलविदा कहो
आने वाले नये दिन का
दिल खोल स्वागत करो |


आशा

11 टिप्‍पणियां:

  1. आने वाले नए दिन का ,
    दिल खोल स्वागत करो |...
    आशा का संचार करती सुन्दर कविता... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना !

    जवाब देंहटाएं
  2. आशा का उजास फ़ैलाती सुंदर रचना.आभार.

    अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
    तय हो सफ़र इस नए बरस का
    प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
    सुवासित हो हर पल जीवन का
    मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
    करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
    शांति उल्लास की
    आप पर और आपके प्रियजनो पर.

    आप को भी सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
  3. नये वर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनायें ! सकारात्मक सन्देश के साथ बहुत सुन्दर रचना ! नया वर्ष सबके जीवन को आलोकित करे यही कामना है ! आभार एवं धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  4. आप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    आशा का संचार करती सुन्दर पोस्ट!
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  6. नये साल के उपलक्ष्य मे बेहतरीन रचना
    आपको नव वर्ष की हृार्दिक शुभकामनाये

    जवाब देंहटाएं
  7. नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें!

    पल पल करके दिन बीता दिन दिन करके साल।
    नया साल लाए खुशी सबको करे निहाल॥

    जवाब देंहटाएं
  8. आशा दी, एक शानदार रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए आभार..... नए साल की शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  9. नववर्ष में हमें करना है – एक ‘संकल्प’;
    खेलेंगे जरूर ‘खेल जिंदगी का’ क्योकि ,
    नहीं है कोई इसका – ‘विकल्प’.
    कोई फर्क नहीं पड़ता यहाँ– ‘जर्सी का’
    वह लाल हो या पीली, हरी हो या नीली.
    वह अध्यात्म की हो, या विज्ञान की ,
    किसी संतरी की हो या किसी मंत्री की.

    यहाँ शर्त बस एक ही है, बस एकही
    खुला रखेंगे दरवाजा - ‘बुद्धि का’,
    झरोखा ‘ज्ञान का’, खिड़की ‘विवेक की ’.
    नहीं होगा वहाँ कोई ‘झीना’ पर्दा भी ;
    किसी ‘भ्रम का’,‘विभ्रम का’,‘लोभ का’…

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: