12 अक्टूबर, 2013

एक व्यंग (मंहगाई )

विजय दशमी पर हार्दिक शुभ कामनाएं |लीजिये आज प्रस्तुत है एक व्यंग मंहगाई पर :-



हूँ मैं मंहगाई
अनंत है  विस्तार मेरा
एक ओर नियंत्रण हो तो
दूसरी ओर विस्तार होता |
मनुष्य आकंठ डूबा मुझ  में
गहन वेदना सहता
फिर भी बच नहीं पाता
मेरे दिए दंशों से |
देख आदमी की विकलता
बेबसी और बेचारगी
दुष्टानन्द अवश्य होता
फिर भी मेरा तोड़ न होता |
हूँ स्वच्छंद स्वेच्छाचारिणी
किसी का बस नहीं चलता
साहस कर यदि उंगली उठाता
कुछ कहने का अवसर पा कर
क्षण भर में कुचला जाता
वह वहीं दब कर रह जाता |
आम आदमी है परेशान
बेहाल मेरी मार से
उसका सोच तक दूषित होता  
भ्रष्टाचार के पथ पर चलता
उदर पूर्ति के लिए
अधिक धन की जुगाड़ में |
मैं सहोदरा भ्रष्टाचार की
फिर भी मन उसका अशांत
मेरा छोर  नहीं पाता
मेरे दिए दंशों से बच नहीं प़ता |
आशा

10 अक्टूबर, 2013

बेटी



(१)
घर की शान हैं बेटियाँ 
सुख की बहार हैं बेटियाँ 
उन बिन घर अधूरा है 
मन की मुराद हैं बेटियाँ  |
(२)
वे जंगली बेल नहीं 
ना ही किसी पर  कर्ज
नाजुक हरश्रृंगार के फूलों  सी 
हैं आँगन की बहार  बेटियाँ |
(३)
धांस फूस सी बढ़ती बेटी 
संग हवा के बहती जाती 
सामंजस्य यदि ना हो पाता
पा तनिक धूप  मुरझा जाती |
(४)
 मन्नतों के बाद तुझे पाया 
हुआ दुआओं का असर 
तुझे बड़ा कर पाया 
अब आँखों सेओट न होना 
मेरा सपना तोड़ न देना |
आशा


08 अक्टूबर, 2013

पुष्प



अपनों से जब तक
बिछुड़ा न था
अपूर्व आभा  लिए था
आकृष्ट  सभी को करता |
महक चहु  दिश फैलाता
अहसास अपने होने का
खोने न देता था
क्यूं कि वह सुरक्षित था  |
जब डाली से बिछुड़ा
गुलदस्ते में सजा
भेट प्रेम की चढ़ा
कुम्हलायाठुकराया गया
सब कुछ बिखर कर रह गया |
अब ना वह था
ना ही महक उसकी
सब कुछ अतीत में
 सिमट कर रह गया |
थी जगह धरती उसकी
जीवन धुँआ धुँआ हुआ
गुबार उठा ऊपर चढा
अनंत में समा गया |
अब न था अस्तित्व
ना खुशबू ना ही आकर्षण
बस थी धुंधली सी याद
उसके क्षणिक जीवन की |



06 अक्टूबर, 2013