21 नवंबर, 2012

कारण ?

सुबह से शाम तक 
गुमसुम बैठी उदास 
अकारण क्रोध की आंधी 
पूरा धर हिला जाती 
पर  कारण खोज न पाती 
कितनी बार खुद को टटोला 
रहा अभियान नितांत खोखला 
कारण की थाह न पाई 
खुद की कमीं नजर न आई 
हूँ वही जो कभी खुश रहती थी 
कितनी भी कडवाहट  हो 
गरल सी गटक लेती थी
उसे भुला देती थी 
पर  अब बिना बात 
उलझाने  लगती 
कटुभाषण  का वार
 अनायास उन  पर
 जिनका दूर दूर तक 
कोइ भी न हो वास्ता 
बाध्य  करता सोचने  को 
हुआ ऐसा क्या की 
अनियंत्रित मन रहने लगा 
कटुभाषण  हावी हुआ 
बहुत सोचा तभी जाना 
अक्षमता शारीरिक 
मन पर हावी हुई 
असंतोष का कारण हुई |
आशा







20 नवंबर, 2012

परिवर्तन मौसम का

सर्दी का अहसास लिए सोए थे 
पौ फटे जब नींद खुली 
आलस था खुमारी थी 
जैसे ही कदम नीचे रखे 
दी दस्तक ठिठुरन ने
घर के कौने कौने में 
सोचा न था होगा परिवर्तन 
इतने  से अंतराल में 
हाथों में पानी लेते ही 
कपकपी होने लगी 
गर्म प्याली चाय की 
दवा रामबाण नजर आई 
जल्दी से स्वेटर पहना 
कुछ तो गर्मी आई 
खिडकी से बाहर झांका 
समय रुका नहीं था 
थी वही गहमागहमी
बस  जलता अलाव चौरस्ते पर 
कुछ लोगों में बच्चे भी थे 
जो अलाव ताप रहे थे 
थे पूर्ण अलमस्त 
हसते थे हंसा रहे थे 

खुशियों से महरूम नहीं 
 किसी मौसम का प्रभाव नहीं 
जीने का नया अंदाज
वहीं   नजर आया 
सारी  उलझनें सारी कठिनाई 
अलाव में भस्म हो गईं
थी केवल मस्ती और शरारतें 
कर लिया था सामंजस्य 
प्रकृति में  होते परिवर्तन से |
काश हम भी उनसे हो पाते 
तब नए अंदाज में नजर आते |
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आशा