04 अक्टूबर, 2012

दिया गुलाब का फूल



दिया गुलाब का फूल
किया इज़हार प्यार का
डायरी में रखा
बहुत दिन तक सहेजा
एक दिन डायरी हाथ लगी
नजर उस पर पड़ी
फूल तो सूख गया 
पर सुगंध अपनी छोड़ गया
अहसास उन भावनाओं का
उसे भूलने नहीं देता
याद जब भी आ जाती
भीनी सी उस खुशबू में
जाने कब खो जाती है
उन यादों के खजाने से
मन को धनी कर जाती है
फिजा़ओं में घुली
यादों की सुगंध
उसको छू जो आई
आज भी हवा में घुली
धीरे धीरे धीमें से
उस तक आ ही जाती है
कागज़ कोरा अधूरा
रहा भी तो क्या
सुगंध अभी तक बाकी है
उसी में रच बस गयी है
दिल में जगह काफी़ है |
आशा

02 अक्टूबर, 2012

अतीत के गलियारे

 


खामोशी तुम्हारी
कह जाती बहुत कुछ
नम होती आँखें जतातीं कुछ कुछ
अनायास बंद होती आँखें
ले जातीं अतीत के गलियारे में
 वर्षा  अश्रु जल की गर्द हटाती
धुंधली यादों की तस्वीरों से
पन्ने खुलते  डायरी के
वे दिन भी क्या थे ?
थे दौनों साथ लिए अटूट विश्वास
सलाहकार बनते मन की बातें करते
उन्हें आपस में बांटते
बदली राहें फिर भी न भूले उन पन्नों को
होता है दर्द क्या
किसी अपने से बिछड़ने का
है महत्त्व कितना स्नेह के पनपने का
सौहाद्र के पलने का
है जो सोच आज
क्या तुमने भी  कभी उसका
अहसास किया होगा
लंबे अंतराल ने उन लम्हों को
बिसरा तो न दिया होगा
कभी तो तुम्हारी यादों में
कोइ अक्स उभरता होगा
यदि वह हो समक्ष तुम्हारे
हालेदिल बयां करने की
मन की परतें खोलने की
क्या कोशिश न करोगे
या अनजानों सा व्यवहार रखोगे
अतीत की उन तस्वीरों को
झुठला तो न दोगे
जो आज भी झांकने लगती हैं
कभी  कभी दिल के झरोखे से |
आशा