30 अगस्त, 2014

प्रतिभा अपरिचित






यत्र तत्र बिखरी प्रतिभाएं
अपनी पहचान बना ना पातीं
आगे आना चाहतीं
पर सही मार्ग  चुन न  पातीं |
एक खोजी नजर चाहिए उनको
अपनी पहचान बनाने को
उन्हें परवान चढाने को
सब के समक्ष लाने को |
जब नजर पारखी धोखा न खाए
पूर्ण पारदर्शिता अपनाए
तभी न्याय उनके संग होगा
प्रतिभा में निखार होगा |
ऐसी प्रतिभा नायाब होगी
गहराई तक छू जाएगी
छाप ऐसी छोड़ जाएगी
बरसों बरस याद की जाएगी |
आशा

28 अगस्त, 2014

श्री गणेश

 

सुत गौरी के 
रिद्धि सिद्धि के दाता
प्रथम पूज्य |

बाल गणेश 
सवारी मूषक की 
माँ दिल हारी |

कार्य अपूर्ण 
गण नायक बिन 
नहीं संपन्न |

करो उद्धार 
आया तुम्हारे द्वार
हे लंबोदर |

मोदक बिन 
धू प दीप अधूरे
हे गणराज |

भोग लगाऊँ
 आजाओ गजानन
कामना पूर्ण |

बप्पा मोरिया
तुम विध्न हरता
जय गणेश |

गौरी नंदन
गणेश चिंतामण
 सुस्वागतम  |


आशा






27 अगस्त, 2014

नव स्वप्न


नव स्वप्न
मन ने एक स्वप्न सजोया
छोटा सा  घरोंदा बनाया
था हरियाली से भरपूर
चहु ओर बरसता नूर |
प्रातः काल द्वार  खुलते ही
सौरभ सुमन स्वागत करता
शीतल पवन आकृष्ट करता
डाल पर डाला झूला
मंथर गति से हिलता |
पास ही झरने की कलकल
पक्षियों की चहचहाहट
जल में अक्स मेरी कुटीया का
बहुत मनोरम लगता
उठने का जी ना करता |
ऊपर नीलाम्बर में
सूर्य छिपा बादलों में
उन से अटखेलियाँ करता
यदि पंख मुझे भी मिलते
उस खेल में शामिल होती
मन उमंग से भरता |
आशा

25 अगस्त, 2014

श्री महाकाल बाबा की अंतिम सवारी





Image result for महाकाल सवारी तस्वीरें

श्री महाकाल बाबा  की अंतिम सबारी :-महाकाल मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों  में से एक है |
प्रत्येक वर्ष सावन के महीने  में व् आधे भादों में  हर सोमवार को भगवान महाकाल अपने भक्तों के हालचाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं |इस हेतु वे विभिद रूप धारण करते हैं |
  उनकी सवारी पालकी में निकाली जाती है |सबसे पहले गार्ड ऑफ़ ऑनर पुलिस गार्ड देते हैं प्रशासन प्रमुख  पूजन करते हैं |पूजन स्थल पर भी अपार भीड़ हो जाती है |भजन मंडलियाँ साथ गाती बजाती चलती हैं |
विभिन्न अखाड़े अपने करतब दिखाते चलते हैं |
    बड़े धूमधाम से सवारी प्रमुख मार्गों से गुजराती है और शिप्रा तट तक जाती है |कहा जाता है कि इस समय भगवान महाकाल  मंदिर में नहीं होते |जब सवारी बापिस आजाती है तब पुन: प्राणप्रतिष्ठा की जाती है |
       बचपन से ही मैंने सवारी देखी है |पर तब के सवारी के रूप में बहुत परिवर्तन हुए हैं |तब इतनी भीड़ नहीं होती थी सरलता से दर्शन सुलभ थे |पर अब इतनी भीड़ होती है कि बेचारे वृद्ध और बच्चे तो बहुत परेशान हो जाते हैं |तब भी आस्थावान लोग दर्शनार्थ जाते अवश्य हैं |
अंतिम सवारी पर स्थानीय अवकाश रहता है | चाहे कितनी भी कठिनाई आये इस दर्शन  का आनंद ही कुछ और होता है |अपार शान्ति का अनुभव होता है |
          दूर दूर से लोग सवारी देखने आते हैं |
बच्चे खिलौनों ,पीपड़ी गुब्बारों का आनंद उठाते हैं |पर फर्क आज देखने को मिलता है |पहले खिलोने मिट्टी के बिकते थी अब नहीं |
             जय श्री महाकाल