19 फ़रवरी, 2022

स्वप्न एक रात का


 

 रात को एक दृश्य देखा 

प्रकृति के सानिध्य में 

चांदनी रात थी 

झील भी पास थी |

 मन ने नियंत्रण खोया

बेलगाम भागा उस ओर 

जहां जाने को नौका रुकी थी 

 उस दिन भी  चांदनी रात थी |

नीला जल झील का

 लुकाछिपी खेलता 

 उसमें थिरकती छवि चाँद की

 मन  मोहक लगती 

अपनी ओर आकृष्ट करती |   

झील के उस पार छोटा सा 

 था मंदिर भोले नाथ का 

वहां पहुँच दर्शन करना

उस में ही खो जाना 

था उद्देश्य उसका  |

जाने कैसे देर हो गई

 उस दृश्य को आत्मसात में 

चाँद की छवि खेल रही थी 

उत्तंग तरंगों से चांदनी रात में |

वह दृश्य भुला नहीं पाई अब तक  

जब भी नेत्र बंद करती 

छवि वही नैनों में उभरती |

जब मंदिर में कदम रखे

अनोखी श्रद्धा जाग्रत हुई  

जल चढ़ाया पूजन अर्चन किया

प्रसाद चढ़ाना ना भूली |

सुकून मिला जो  मन को है याद उसे 

 चांदनी रात में प्रभु के दर्शन की   

 बारम्बार याद आती है छवि वहां की   

  जो मन में बसी है आज भी   |

आशा

18 फ़रवरी, 2022

परिवर्तन



 

आज के युग में  

बहुत कुछ बदल गया 

             उनके सोच में 

 बड़ा परिवर्तन हुआ है |

उनने भी यह जानना नहीं चाहा

यह बदलाव क्यूँ ?

हुआ यह कैसे किसकी सोहवत में

यह तक न सोचा |

ऎसी आधुनिकता की हवा चली  

उसमें बह कर कहाँ चले जान न पाए 

 आज   के मंजर की झलक चहु ओर फैली है

पहले क्या थे यह तक भूल गए |

धधकती आग सी मन बेचैन करती

बरसों की शिक्षा व्यर्थ हुई आज 

केवल अंधानुकरण ही रहा शेष

आज के युग में |

मन में क्षोभ होता है दिल कसकता है 

हमारे पालन पर जब सवाल उठते हमने 

अति  अनुशासन में रखा बच्चों को

बचपन उनका छींन लिया |

आज वे यह तक भूले

 पेट काट काट पाला था उन्हे

सीमित आय थी तब भी

हम अपनी मर्यादा में रहे |

धनवानों की सोहवत नहीं की

अपनी चाहतों पर  रखा नियंत्रण  

पर उनके लिए कोई कमी नहीं की     

केवल आज की तरह कर्ज में न डूबे |

आधुनिकता का भूत न उतरा सर से 

अपनी क्षमता की सीमा न भूले

आत्मनिर्भर बनाया अपने कर्तव्य पूरे किये    तभी चिंता मुक्त हुए  |

आशा   

धरोहर यादों की


 

इस छोटे से जीवन के सभी लम्हें

अपनी यादे छोड़ जाते

वे ही होते संचित धरोहर जीवन के

कोई नहीं बचता जिससे |

होती यादें वेशकीमती 

कोई इसे भुलाना न चाहता

हैं एकांत बिताने की हसीन सामग्री

कई सलाहें शिक्षाएं समाहित होतीं इन में |

 फिर रिक्तता  नहीं रहती जीवन में

  जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर ठहरते

 होते अपनों से दूर उन्हें याद करते  

यादों में सब धूमते रहते आसपास |

कभी एहसास तक न होने देते   

कहाँ गलती हुई हम से

यदि यही सब जानते मन मंथन करते  

कठिनाइयां सरलता से सुलझ पातीं  |

 क्षमा प्रार्थी होते अपनी भूलों पर पशेमा होते   

 सीमाएं अपनी जान कर अपनी हद में रहते

 असामाजिक न होते किसी से बैर न पालते

हमारी भी खुशहाल जिन्दगी होती |

यही धरोहर पीढ़ियों तक चलती

भूलें जो हमसे हुईं आने वाली पीढ़ी न करती

हम ऐसी शिक्षा  देते कि

अनुकरण की मिसाल बनते

वर्षों तक याद किये जाते |

आशा 

16 फ़रवरी, 2022

आत्म मंथन


 

इस छोटे से जीवन के लम्हें

अपनी यादे छोड़ जाते

वे होते संचित धन जीवन के

कोई नहीं बचता जिससे |

होती यादें वेशकीमती अनमोल  

कोई इन्हें  भुलाना न चाहता

हैं एकांत बिताने की प्यारी सी सामग्री

कई सलाहें शिक्षाएं समाहित होतीं इन में |

 फिर रिक्तता  नहीं रहती जीवन में

  जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर ठहरते

 या होते अपनों से दूर उन्हें याद करते  

यादों में सब धूमते रहते आसपास |

कभी एहसास तक न होने देते   

कहाँ गलती हुई हम से

यदि यही सब जानते आत्म मंथन करते  

कठिनाइयां सरलता से सुलझ पातीं  |

 क्षमा मांगते अपनी भूलों का करते आकलन        सीमाएं अपनी जान अपनी हद में रहते

 असामाजिक न होते किसी से बैर न पालते

हमारी भी खुशहाल जिन्दगी होती |

यही धरोहर पीढ़ियों तक चलती

भूलें जो हमसे हुईं आने वाली पीढ़ी न करती

हम ऐसी शिक्षा  देते कि

अनुकरण की मिसाल बनते

वर्षों तक याद किये जाते |

आशा  






चंद पंक्तियाँ कविता की

 


कविता की चन्द पंक्तियाँ

करतीं बेचैन मन उलझी लटों सी

कहने  को है चंद पंक्तियाँ

पर बड़ा है पैना वार उनका  |

खुले केश हों और उलझी लटें

फिर क्या कहने उनके

सुलझाए न सुलाझतीं

समय की कीमत न समझतीं |

मुझे यह बात  उलझाए रखती

आखिर कैसे यह गुत्थी सुलझे

अधिक समय व्यर्थ न हो

इतने जरासे काम में 

जब भी कोशिश करती सुलझाने की 

और अधिक ही उलझन होती 

खीचातानी के सिवाय बात न बनाती 

जैसे ही बात बनती 

 एक नई कविता जन्म लेती |

आशा 


15 फ़रवरी, 2022

हाइकु


                                           छाई  घटाएं 
 

बेमौसम वर्षा है 

सर्दी बढ़ेगी 


हआ  सबेरा 

सोती दुनिया जागी 

हुई सक्रीय 


क्या जुल्म नहीं 

है सताना किसी को 

कष्टकर है 


चांदी से  बाल 

चमकता चेहरा 

अनुभवी है 


सब देखना 

फिर वही बताना 

उलझाना ना 


उससे स्नेह 

बड़ा मंहगा पडा 

सस्ता नहीं 


मधुमालती 

कितनी है सुन्दर 

मन मोहती


यही मौसम 

सर्दी की ऋतू होती 

कष्टदायक 


मैं और तुम 

नदी के दो किनारे 

कभी न मिले 


मन बेचैन 

उफनती नदी सा 

न हुआ शांत 


आशा 


13 फ़रवरी, 2022

क्या समस्या तुम्हारी


 

कब तक किसी का

 सहारा लोगे

क्या कभी खुद पर

 भी भरोसा रखोगे |

 है यही समस्या तुम्हारी

किसी  कार्य की रूप रेखा नहीं

स्पस्ट तुम्हारे मन में

कभी कुछ और क्या चाहत है |

नहीं तुम जानते

क्या करना है

क्या करना चाहते हो

जिससे सफलता हाथ आ पाए |

कुछ भी फल न मिला है

सिवाय असंतोष के

असफलता ही हाथ आई है

यहीं तुमने मात खाई है |