रात को एक दृश्य देखा
प्रकृति के सानिध्य में
चांदनी रात थी
झील भी पास थी |
मन ने नियंत्रण खोया
बेलगाम भागा उस ओर
जहां जाने को नौका रुकी थी
उस दिन भी चांदनी रात थी |
नीला जल झील का
लुकाछिपी खेलता
उसमें थिरकती छवि चाँद की
मन मोहक लगती
अपनी ओर आकृष्ट करती |
झील के उस पार छोटा सा
था मंदिर भोले नाथ का
वहां पहुँच दर्शन करना
उस में ही खो जाना
था उद्देश्य उसका |
जाने कैसे देर हो गई
उस दृश्य को आत्मसात में
चाँद की छवि खेल रही थी
उत्तंग तरंगों से चांदनी रात में |
वह दृश्य भुला नहीं पाई अब तक
जब भी नेत्र बंद करती
छवि वही नैनों में उभरती |
जब मंदिर में कदम रखे
अनोखी श्रद्धा जाग्रत हुई
जल चढ़ाया पूजन अर्चन किया
प्रसाद चढ़ाना ना भूली |
सुकून मिला जो मन को है याद उसे
चांदनी रात में प्रभु के दर्शन की
बारम्बार याद आती है छवि वहां की
जो मन में बसी है आज भी |
आशा
भक्ति भावना से सिक्त सुन्दर सृजन ! बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |