आज के युग में
बहुत कुछ बदल गया
उनके सोच में
बड़ा परिवर्तन हुआ है |
उनने भी यह जानना नहीं चाहा
यह बदलाव क्यूँ ?
हुआ यह कैसे किसकी सोहवत में
यह तक न सोचा |
ऎसी आधुनिकता की हवा चली
उसमें बह कर कहाँ चले जान न पाए
आज के मंजर की झलक चहु ओर फैली है
पहले क्या थे यह तक भूल गए |
धधकती आग सी मन बेचैन करती
बरसों की शिक्षा व्यर्थ हुई आज
केवल अंधानुकरण ही रहा शेष
आज के युग में |
मन में क्षोभ होता है दिल कसकता है
हमारे पालन पर जब सवाल उठते हमने
अति अनुशासन में रखा बच्चों को
बचपन उनका छींन लिया |
आज वे यह तक भूले
पेट काट काट पाला था उन्हे
सीमित आय थी तब भी
हम अपनी मर्यादा में रहे |
धनवानों की सोहवत नहीं की
अपनी चाहतों पर रखा नियंत्रण
पर उनके लिए कोई कमी नहीं की
केवल आज की तरह कर्ज में न डूबे |
आधुनिकता का भूत न उतरा सर से
अपनी क्षमता की सीमा न भूले
आत्मनिर्भर बनाया अपने कर्तव्य पूरे किये तभी चिंता मुक्त हुए |
आशा
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment ji
जवाब देंहटाएंमाध्यम वर्गीय हर इंसान की यही कहानी है ! सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |