15 जनवरी, 2022

आज का परिवेश

 

 वर्तमान परिवेश में 

बहुत कुछ बदल रहा है

ना हम परम्परा वादी रहे

ना ही आधुनिक बन पाए |

हार गए यह सोच कर

 हम क्या से  क्या हो गए

किसी ने प्यार से पुकारा नहीं

हमने भी कुछ स्वीकारा नहीं मन से | 

 किसी बात को मन में चुभने से  

रोका भी नहीं गंभीरता से 

 विचार भी नहीं किया किसी को कैसा लगेगा

हमारे सतही व्यवहार का नजारा |

कोई क्या सोच रहा हमारे बारे में

इसकी हमें भी फिक्र नहीं  

यही है आज आपसी व्यवहार का तरीका

किसी से नहीं सीखा दिखावे का राज |

इस तरह के प्यार का तरीका

जब देखा दूसरों का आना जाना

मन का अनचाहे भी मिलना जुलना

चेहरे पर मुखोटा लगा

 घंटों वाद संवाद करना |

सभी जायज हैं

 आज के समाज में

हर कार्यक्रम में छींटाकसी करने में 

खुद को सबसे उत्तम समझने में |

सब का स्वागत करने के लिए 

मन न होने पर भी दिखावा करना 

दूसरे  के महत्त्व को कम जताना 

यही है आज का चलन | 

आशा 

 

                                                                                                             

 

13 जनवरी, 2022

मकर संक्रांति


 

त्राहि त्राहि मच रही है

इस सर्दी के मौसम में

पतंग तक उड़ा नहीं पाते

ना ही गुल्ली डंडा खेलते  |

घर में दबे महामारी के भय से 

जैसे ही कोई मित्र आए

मम्मी को पसंद नहीं आता

वह इशारे से मना कर देती |

छत पर जाने को पतंग उड़ाने को 

रंगबिरंगी पतंग काटने को 

मन मसोस कर रह जाते  

सोचा इस वर्ष नहीं तो क्या आगे जीवन पड़ा है| 

अभी बचपन नहीं गया है 

पर मन में खलिश होती रही  

सारा त्योहार ही बिगड़ गया

कुछ भी आनंद न आया |

 पतंग नहीं  उड़ाने में 

  तिल गुड़ खिचड़ी खाने में 

ना गए  मिलने मिलाने किसी से 

रहे घर में ही कोरोना  से बचने के लिए |

यही मन में रहा विचार 

सरकारी नियम पालना है जरूरी 

समाज में रहने के लिए 

अपने को निरोगी रखने के लिए |  

आशा  

12 जनवरी, 2022

हूँ कितनी अकेली


 

हूँ कितनी अकेली

अब तक जान न पाई

मेरे मन में क्या है

खुद पहचान नहीं पाई |

मेरा झुकाव किस ओर है

यही ख्याल हिलता डुलता रहा

 स्थाईत्व नहीं आया मेरे सोच में

 अपने को स्थिर नहीं कर पाई  |

मैं क्या हूँ? क्या चाहती हूँ ?

ना  मैं समझी न किसी ने समझाया   

तभी मनमानी करना ही पसंद मुझे 

मन की ही करती हूँ जिद्दी हो गई  हूँ |

अब लग रहा है कहीं असामाजिक

तो नहीं हो गई हूँ

अपने में कोई बदलाव न कर  

खुश नहीं हूँ फिर भी |

क्या कोई तरकीब नहीं जिससे

समय के साथ चल पाने से

मन को सुकून मिल पाएगा  

खुशी आएगी खुद को सामाजिक बना लेने से |

आशा 

11 जनवरी, 2022

नयन सजल हैं


               नयन सजल हैं

दिल भी भराभरा
हुआ संतप्त मन
जीवन में क्या रखा है |
नेत्रों में अश्रुओं का बहना
उनका बहाव नदिया सा
थमने का नाम नहीं लेता
मन को कितना समझाऊँ |
बीते कल को कैसे भुलाऊँ
जब भी विचार मन में आता
उसकी शान्ति हर ले जाता
जितना भी दूर रहूँ उससे
मन का दुःख जीने नहीं देता |
उलझन छोटी हो या बड़ी
कोई निष्कर्ष नजर न आता
यहीं हार जीवन की होती
मरण का मन हो जाता |
जब कोई अपना चला जाता
मन विचलित हो जाता
बहुत समय लगता भुलाने में
जीवन मरण की कहानी रह जाती |
कैसे मन को समझाऊँ
यही रीत दुनिया की है कैसे जताऊँ
हार गई दिल को समझा कर
क्षणिक जीवन है जानती हूँ |
किसी का भविष्य कोई नहीं जानता
यह भी मालूम है
फिर यह विचलन कैसा है
यही मानव कमजोरी है |
आशा
Smita Shrivastava, Phoolan Datta and 13 others
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  • Dilip Kumar
    प्रणाम।
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    • 22h
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    Asha Lata Saxena replied
     
    1 Reply
  • Smita Shrivastava
    शाश्वत सत्य को दर्शाती भावपूर्ण रचना
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    • 21h
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    • 21h