12 जनवरी, 2022

हूँ कितनी अकेली


 

हूँ कितनी अकेली

अब तक जान न पाई

मेरे मन में क्या है

खुद पहचान नहीं पाई |

मेरा झुकाव किस ओर है

यही ख्याल हिलता डुलता रहा

 स्थाईत्व नहीं आया मेरे सोच में

 अपने को स्थिर नहीं कर पाई  |

मैं क्या हूँ? क्या चाहती हूँ ?

ना  मैं समझी न किसी ने समझाया   

तभी मनमानी करना ही पसंद मुझे 

मन की ही करती हूँ जिद्दी हो गई  हूँ |

अब लग रहा है कहीं असामाजिक

तो नहीं हो गई हूँ

अपने में कोई बदलाव न कर  

खुश नहीं हूँ फिर भी |

क्या कोई तरकीब नहीं जिससे

समय के साथ चल पाने से

मन को सुकून मिल पाएगा  

खुशी आएगी खुद को सामाजिक बना लेने से |

आशा 

2 टिप्‍पणियां:

  1. अपने विचारों को सकारात्मक रखें और खुद पर विश्वास रखें तो सब उलझन अपने आप सुलझ जाती हैं ! किसीकी राय या मशवरे की ज़रुरत नहीं होती !

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  2. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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