नयन सजल हैं
दिल भी भराभरा
हुआ संतप्त मन
जीवन में क्या रखा है |
नेत्रों में अश्रुओं का बहना
उनका बहाव नदिया सा
थमने का नाम नहीं लेता
मन को कितना समझाऊँ |
बीते कल को कैसे भुलाऊँ
जब भी विचार मन में आता
उसकी शान्ति हर ले जाता
जितना भी दूर रहूँ उससे
मन का दुःख जीने नहीं देता |
उलझन छोटी हो या बड़ी
कोई निष्कर्ष नजर न आता
यहीं हार जीवन की होती
मरण का मन हो जाता |
जब कोई अपना चला जाता
मन विचलित हो जाता
बहुत समय लगता भुलाने में
जीवन मरण की कहानी रह जाती |
कैसे मन को समझाऊँ
यही रीत दुनिया की है कैसे जताऊँ
हार गई दिल को समझा कर
क्षणिक जीवन है जानती हूँ |
किसी का भविष्य कोई नहीं जानता
यह भी मालूम है
फिर यह विचलन कैसा है
यही मानव कमजोरी है |
आशा
धन्यवाद फूलां जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप सब को लाइक के लिए |
जवाब देंहटाएंयह सृष्टि का चिरंतन नियम है तो इससे विचलित क्यों होना ! स्वीकार के सिवा और कोई विकल्प भी तो नहीं ! भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |