18 फ़रवरी, 2020

वेदना






बहुत वेदना होती है
जब शब्दों के तरकश से
अपशब्दों के बाण निकलते हैं
अंतिम बाण  न चले जब तक
मन को शान्ति  नहीं मिलती  |
जब  नियंत्रण वाणी पर न हो  
अनर्गल प्रलाप बढ़ने लगे   
मन छलनी होता जाता फिर भी
 कोई हल नहीं निकल पाता |
तन की पीर सही जा सकती
घाव गहरा हो तब भी भर जाता
पर तरकश से निकला तीर
फिर बापिस नहीं आता
जब निशाना चूक नहीं पाता
 और भी विकृत रूप धारण कर लेता |
बहुत वेदना होती है जब
 अपने ही पीठ पर  वार करें
झूठ का सहारा लेकर शब्दों का प्रहार करें
अपना कष्ट तो समझें पर औरों का नहीं
केवाल अपना ही सोचें अन्य को नकार दें |
गहन वेदना होती है जब अपशब्दों का प्रयोग
सीमा पार करे बड़े छोटे का अंतर भूले
व्यर्थ की बकवास करे खुद को बहुत समझे
 अनर्गल बातों को तूल दे
अन्य सभी को नकार दे |
आशा