15 नवंबर, 2018

अतिथि हो कर रह गए हैं हम



अपने ही घर में
अतिथि हो कर  रह गए हम
साथ रहेंगे साथ ही चलेंगे
किया कभी वादा था
पर झूटा निकला
समय के साथ चल न सके
आधुनिकता की दोड़ में
बहुत पिछड़ गए हम
अक्सर यही सुनने को मिलता
सोच बहुत पुरानी हमारी
यदि साथ समय के
न चल पाए
लोग क्या कहेंगे ?
कल्पना थी
एक छोटे से घर की
मिलजुल कर
एक साथ रहने की
मिल बांट कर
सुख दुःख सहने की
कभी सच न हो पाई
सब ने साथ छोड़ा
खड़े हैं विघटन के कगार पर
आज के संदर्भ में
कोई नहीं अपना
अतिथि बन कर रह गए हैं
अपने ही घर में
ना खुद का अस्तित्व  है
हर बार दूसरों की सलाह
पर चलने को बाध्य
जो कभी अपने कहलाते थे 
हुए बहुत दूर दराज के
खुद का वजूद  ही
कहीं खो गया है
रिश्तों की दूकान लगी है
पर कोई न अपना
सच्चे अर्थों में
भीड़ में अकेले खड़े हैं
घर में हमारे लिए
कोई जगह नहीं है |


आशा

14 नवंबर, 2018

बहुत हो चुका















बहुत हो चुका खेल 
लुका छिपी का
वादे करने का 
उन्हें  पूरा न करने का
अति हो गई अब तो
जनता की सहन शक्ति की 
पांच बरस होने को आए
एक भी कार्य पूरा न कर पाए
किस मुंह से फिर सामने आएं
वादे  तो वादे  हैं 
क्या जरूरी है पूरे किये जाएं
जा पहुंचेंगे समक्ष जनता के
कोई दलील ले कर
क्षमा याचना कर लेंगे 
शर्म  से सर झुक जाएगा
पर नेता नहीं 
अपनी गलती कभी न स्वीकारेंगे
गर्व से सर उन्नत कर
मताधिकार की मांग करेंगे
आनेवाले कल की जिम्मेदारी
निभाने को होंगे तत्पर
केवल वादे करेंगे करते रहेंगे
पूरा करने को कभी न तत्पर
बहुत हो चुका
यह चुनाव का खेल
अब तो जनता उक्ता  गई है
इस नकली प्रजातंत्र से
चंद जने ही लाभ लेते हैं
मिठाई मलाई खा लते हैं
आम  लोगों को खाना तक
मयस्सर  नहीं  होता
उनके कुत्ते भी जो नहीं खाते
सूंध कर छोड़ जाते हैं
घूरे पर से जूठन उठा कर
पेट की आग बुझा लेते हैं   
बातों का कोई अंत नहीं
यह प्रजातंत्र नहीं
अब बहुत हो गया
इसका कोई न अंत |


आशा