एक दिन की बात है सुबह बहुत ठण्ड थी |मैंने अपनी बाई से
पूंछा इतनी देर कैसे हुई |वह हंस कर बोली मुझे घर का सारा काम
कर के आना पड़ता है |आज नीद नहीं खुली इसी से देर हुई |उसदिन
मुझे गुस्सा आगया मैंने उससे कहा तुम मुझे जबाब देती हो जब काम
करने आई हो तब समय का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा |वह इस बात
से नाराज हो गई |बोली सम्हालो अपना घर मुझे क्या खरीद लिया है
और न जाने क्या बकने लगी और अपना सामान उठा कर चल दी |
उस समय तो मैंने काम कर लिया पर ठण्ड का प्रभाव दिखने लगा
मुझ पर दिखने लगा सरदी ने अपना रंग दिखाया और मैं बीमार पड़ गई|
तब उसका कटु भाषण मेरे कानों में गूंजने लगा क्या हमारे जान नहीं है
हमको सरदी नहीं लगती | उसका मन न था काम पर आने का
पर यह जानते हुए कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती उसने कहा था
क्या कुछ छुट्टीनहीं मिल सकती मैंने उसे निकाल्तो दिया पर दया नहीं आई उस पर
आशा सक्सेना
20 जनवरी, 2024
व्यवहार बाई का
19 जनवरी, 2024
मैंने किया विचार
मेरा रोम रोम हुआ
पुलकित
तुम्हारी प्रगति देख
मैंने कभी कल्पना
न की थी कि
तुम पर असर होगा
किसी रोकटोक का
मन बाग बाग़ हुआ
तुम्हारी
यह जादूगिरी देख कर
तुम्हारी यही कला
मुझे क्यों नहीं आती
आजतक बिचारों में
खोई रही
कोई हल नजर ना
आया अभी तक |
आशा सक्सेना
राम ही राम
दिन में राम रात को राम
सोते जागते राम सपनों में राम
राम में खो गई और न दीखता कोई |
माया छुटी मोह से हुई दूर
केवल ममता रही शेष
वह भी होने लगी दूर मुझ से
अपने आपमें रमती गई
दुनियादारी से हुई दूर
केवल राम के रंग में रंगी |
जब दुनिया कहे भला बुरा मुझे
इसका कोई प्रभाव नहीं होता
मुझे एक ही चिंता बनी रहती केवल
राम से दूरी न होय |
जागूं तो राम मिले
सोते में विचार मन में रामका होय
जब देखूं सारे दिन आसपास
राम राम दिखता रहे
सारा जग राम मय हो जाए |
आशा सक्सेना
18 जनवरी, 2024
तस्वीर की विशेषता
कला कौशल तुम्हारा
तस्वीर में रंग लाया
कुछ ही रंगों का उपयोग हुआ
पर वे रहे विशेष |
तस्वीर बनी बेहद सुन्दर
उसकी कोई सानी न थी
रंगों का अदभुद ताल मेल
किसी अन्य से न था |
अपने आप में दिखती सजीव सी
मानो बोल पड़ेगी अभी ही
दिखती सजींव सुन्दर जीवंत सी
फेलाती आकर्षण दूर तक |
आशा सक्सेना
17 जनवरी, 2024
हाइकु
दरवाजे पर डोली खड़ीहै
जीवन में असंतुलन हर समय रहा
कभी ठहराव नहीं आया
मैंने कोशिश भी की
ट्रेन पटरी पर नहीं आई |
इससे बेचैनी अधिक बढी
दर्द बढ़ता गया
सुधार उसमें ना आया
किसी ने कहा आध्यात्म का सहारा लो
जिसे कभी करने का मन न हुआ
यह भी न कर सकी
पर मन पर नियंत्रण करने की ठानी
इस में सफल हुई
तब देखा द्वार पर डोली खड़ी हैं
मुझे राम घर ले जाने के लिए |
जैसे ही डोली को देखा
मन खोया राम में
मैं ने जीवन को सफल पाया
अपने को राम का आश्रित पाया
आशा सक्सेना
16 जनवरी, 2024
भावोंका उद्गम
ये भाव कहांसे आए
कहाँ सजे सजाए
जान नहीं पाई
कोशिश की जानकारी की |
मन में हुई बड़ी बेचैनी
जल्दी से निष्कर्ष निकालने की
किसी ने सलाह दी
शब्द कोष खोजने की |
शव्दार्थ तो सरलता से मिला
पर शब्द के उदगम का अर्थ तक
पहुँच नहीं पाई
गुरू जी के पास गई
उनसे मिली जानकारी भाव की
जब खोजा अपना ही
मन का कोना कोना |
मन को सुकून आया
जब खोज पाई
सही अर्थ भाव का
तभी आगे बढ़ने की तमन्ना हुई |
आशा सक्सेना
15 जनवरी, 2024
कवि के भाव खोजते
कवि के भाव खोजते उचित शब्दावाली
मन के विचार व्यक्त करने को
जब सही शब्द मिलते
वहअपने मन के भेद खोल पाता |
जब पूरी संतुष्टि शब्दो से होती
सुन्दर रचना का जन्म होता
उसका मूल्यांकन हो पाता
कवि के विचारों को पंख मिलते उड़ने को |
अपने को ठीक से समझाने के लिए
यदि कोई धुन चुन कर वह गुनगुनाता
जब वह गाता अपनी रचना को
लोगों के मुंह से वाह वाह लिकलती |
मन प्रफुल्लित हो जाता
लेखन उसका सार्थक होजाता
और प्रोत्साहन मिलता
अन्य रचना के जन्म को |
आशा सक्सेना
14 जनवरी, 2024
दीप शिखा
अगना बुहारा
द्वार झाड़ा पोंछा
पूजा की थाली सजाई
श्री राम जी के स्वागत के लिए|
थाल में दीपक सजाए
आरती के लिए
तेल लिया बाती डाली दीपक मैं
फिर उसे चौक पर रखा
प्रज्वलित किया
आराधना के लिए .
दीपक की लौ तेज हुई
ऊंचाई छूने लगी
अद्भुद छवि दिखी मंदिर में |
एक बात दिखाई दी
दिए के नीचे
कोई रौशनी न थी
घना अन्धेरा था
सोचा यह कैसे हुआ पर
इसका कोई जबाब न
था
देखा दीप शिखा की चमक में
कोई कमीं न थी |
वायु के घटते बढ़ते वेग से
दीप शिखा ने नर्तन किया
जब वायु वेग बढ़ा
दीप शिखा तेज हो कर विलुप्त हुई
फिर अन्धकार हुआ वह
कहाँ गई कोई जान न सका
उसका अभाव देख
मन को कष्ट हुआ
फिर से दीप जलाए न गए
भय था वायु वेग के आने का |
आशा सक्सेना