20 जनवरी, 2024

व्यवहार बाई का

 

एक दिन की बात है सुबह बहुत ठण्ड थी |मैंने अपनी बाई से

पूंछा इतनी देर कैसे हुई |वह  हंस कर बोली मुझे घर का सारा काम

कर के आना पड़ता है |आज नीद नहीं खुली इसी से देर हुई |उसदिन

मुझे गुस्सा आगया मैंने उससे कहा तुम मुझे जबाब देती हो जब काम

 करने आई हो तब समय का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा |वह  इस बात

से नाराज हो गई |बोली सम्हालो अपना घर मुझे क्या खरीद लिया है

और न जाने क्या बकने लगी और अपना सामान उठा कर चल दी |

उस समय तो मैंने काम कर लिया पर ठण्ड का प्रभाव दिखने लगा

मुझ पर दिखने लगा सरदी ने अपना रंग दिखाया और मैं बीमार पड़ गई|

तब  उसका कटु भाषण मेरे कानों में गूंजने लगा क्या हमारे जान नहीं है

हमको सरदी नहीं लगती | उसका मन न था काम पर आने का 

पर यह जानते हुए कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती उसने कहा था 

क्या कुछ छुट्टीनहीं मिल सकती मैंने उसे निकाल्तो दिया पर दया नहीं आई उस पर 

आशा सक्सेना 


1 टिप्पणी:

  1. सच कहूँ तो ग़ुस्से में हम अक्सर सामने वाले की हालत भूल जाते हैं। बाई भी इंसान है, उसका भी घर-परिवार है, थकान है, और ठंड में काम करना कितना मुश्किल होता है ये हम सोचते नहीं। आपने उसे निकाल तो दिया, पर दिल से आपको भी चुभा होगा। ऐसे हालात में थोड़ा प्यार और समझदारी ज़्यादा काम आती है।

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