१-खेतों में आई बहार
पौधों ने किया नव श्रंगार
रंगों की देखी विविधता
उसने मन मेरा जीता |
उसने मन मेरा जीता |
२-रंगों का सम्मलेन
मोहित करता मेरा मन
या कोई मारीचिका सा
भ्रमित करता उपवन |
३-दीपक से दीपक जलाओ
कलुष मन का भूल जाओ
प्रेम से गले लगाओ
है यही संदेशआज का
हिलमिल कर त्यौहार मनाओ |
४-दीप जलाओ तम हरो
हे विष्णु प्रिया धन वर्षा करो
मंहगाई की मार से
कुछ तो रक्षा करो |
५- शमा के जलाते ही रौशनी होने लगी
परवाने भी कम नहीं
हुए तत्पर आत्मोत्सर्ग के लिए |
आशा
परवाने भी कम नहीं
हुए तत्पर आत्मोत्सर्ग के लिए |
आशा