मनोभाव पिघल कर आ जाते
खुली किताब से चेहरे पे
अनचाही बातों का भी,
इजहार कराते चेहरे से |
ये राज कभी न समझ पाए
अपने बेगाने कहने से
अहसास तभी तक बाकी है
जो भाव समझ ले चेहरे से|
इजहार कराते चेहरे से |
ये राज कभी न समझ पाए
अपने बेगाने कहने से
अहसास तभी तक बाकी है
जो भाव समझ ले चेहरे से|
रहते जो दूर बसेरे से
सहते दूरी को गहरे से
मनोभाव सिमट कर रह जाते
अंतर्मन में धीरे से .........|
मनोभाव सिमट कर रह जाते
अंतर्मन में धीरे से .........|
आशा