23 अगस्त, 2014

चर्चा आम हो गई





बीते कल और आज में
है अंतर स्पष्ट
पहले दबी ढकी बातें थीं
यहाँ वहां निगाहें थी
तब भी राज
 कभी ना खुलते
सदा दबे ही रह जाते थे
जीवन के साथ
चले जाते थे
अब सब नजर आते हैं
सीमाएं लांघ जाते हैं
अब सुरा सुन्दरी की चर्चा 
आम हो गई 
पहले दबी ढकी थी 
अब सरेआम   हो गयी
हया का पर्दा उठा 
बेहयाई रोज की 
बात हो गई
अब राज कोई न रहा 
चर्चा आम हो गई |
आशा

20 अगस्त, 2014

ग्रंथि मन की


दिए गए आशीष 
कितने सार्थक आज 
एक बच्चा पल न पाता 
झूलाघर को सोंपा जाता 
क्या संस्कार पाएगा
सोचने को बाध्य करता |
कितना अकारथ है  कहना 
दूधो नहाओ पूतो फलो
एक आँख  किसकी
बेटी बिन घर अधूरा
बेटा वंश बेल बढ़ाएगा |
सभी आकंठ लिप्त
धन संचय  की होड़ में
पीछे रहना नहीं चाहते 
आधुनिकता की दौड़ में
 यहाँ ममता का क्या काम |
 भाषण नारी उत्थान के
नारी जागरण की बातें 
पर घर में सम्मान कितना
 महिलाएं ही जानती हैं
खुद को पहचानती हैं ||
आए दिन की तानेबाजी 
घर में दर्जा  दासी सा
वे रोज झेलती रहतीं
नियति से करके समझौता 
उफ तक नहीं करतीं |
आशीषों का अर्थ खोजती 
मन में ग्रंथि बना बैठी 
नया महमान यदि आया
क्या न्याय उसे मिल पाएगा 
वह कैसे न्याय करेगी |
दौनों में से किसे चुनेगी 
नौकरी  या माँ की ममता
पहले ही मंहगाई है 
घर में बहुत तंगाई है
यदि दौनों को एक साथ  चुना
 झूला घर आबाद होगा
 दौनों के संग न्याय न होगा|
आशा













19 अगस्त, 2014

बेटा ही क्यूं





 वर कैसा हो
बेटी विवाह योग्य
जान न पाया |

दुखी बिटिया
जीना दूभर हुआ
आंसू बहते |


सुलगी देह
दहकते अंगारे
देख न पाया |


बेटी दीखती
धधकती ज्वाला में
सह न पाया |


क्यूं चाहत है
बेटे की बेटी बिना
सोच न पाया |


आशा

17 अगस्त, 2014

जन्माष्टमी पर्व पर :-








कन्हिया आया
गोकुल गलियों में  
ले ग्वाल बाल |
धूम मचाई
दधि माखन खायो
मटकी फोड़ी | 

रूठी राधिका
बंसी की धुन सुन
धावत आई |
है नटखट
बरजोरी करत
राधिका संग |
गोकुल छोड़ा
वध कंस का किया
सभी संतुष्ट |

नीर बहाते
रह गए अधूरे 
गोप गोपियाँ |

उद्धव हारे 
समझा न सके वे
विरही मन |

 
आशा