07 जनवरी, 2012

स्याही रात की

जब गहराती स्याही रात की
बेगानी लगती कायनात भी
लगती चमक तारों की फीकी
चंद्रमा की उजास फीकी |
एक अजीब सी रिक्तता
मन में घर करती जाती
कहर बरपाती नजर आती
हर आहट तिमिर में |
सूना जीवन उदास शाम
और रात की तनहाई
करती बाध्य भटकने को
वीथियों में यादों की |
बढ़ने लगती बेचैनी
साँसें तक रुक सी जातीं
राह कोई फिर भी
नहीं सूझती अन्धकार में |
क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
इस गहराते तम से
सूरज की किरण झाँकेगी
बंजर धरती से जीवन में |
कभी तो रौशन हो रात
शमा के जलने से
यादों से मुक्त हो
खुली आँखों में स्वप्न सजें |
आशा



04 जनवरी, 2012

अफवाहें

उडाती अफवाहें बेमतलब 
तुमने शायद नहीं सुनीं 
जब सामने से निकलीं 
लोगों ने कुछ सोचा और |
मन ही मन कल्पना की 
कोइ सन्देश दिया होगा 
तुम मौन थीं तो क्या हुआ 
आँखों से व्यक्त किया होगा |
कुछ  मन चले छिप छिप  कर
सड़क किनारे खड़े हुए 
इशारों से बतियाते रहते 
छींटाकशी से बाज न आते |
हम तुम तो कभी भी
आपस  में रूबरू न हुए
ना कभी आँखें हुईं चार
ना ही उपजा कभी प्यार |
फिर  भी ऐसा क्यूँ ?
मनचलों बेरोजगारों की
शायद फितरत है यही
कटाक्ष  कर प्रसन्न होने  की |
मन  ही मन ग्लानी होती है
उनकी सोच कितनी छोटी है
यदि अफवाहें तुम तक पहुंची
तुम भी क्या वही सोचोगी
जो मैं सोच रहा हूँ ?
आशा






01 जनवरी, 2012

शब्द

शब्दों का दंगल आस पास 
अस्थिर करता मन कई बार 
दंगल का कैसे ध्यान धरें 
आकलन  शब्दों का कौन करे |
नहीं  सरल शब्दों को तोलना 
उन  वाणों से बच रहना
सत्य असत्य की पहिचान कर 
सही  अर्थ निकाल पाना |
कभी होता शब्द भी उदास 
देख   अपनी अवहेलना
है वह उस तारे सा 
जो टूटा खंड खंड होगया 
जाने  कहाँ विलुप्त हो गया |
उस शब्द का है महत्त्व अधिक 
जो कुछ बजन रखता हो 
जिस पर कोई अमल करे 
मूल्य  उसका समझ सके |
अनर्गल कहे गए शब्द 
बदलते  रहते शोर में 
और खो जाते भीड़ में 
सिमट जाते किसी आवरण में |
अनेक  शब्द अनेक अर्थ
कैसे ध्यान सब का रहे
हैं  अनेक तारे अर्श में
गिनने की कोशिश कौन करे |
आशा