सुख दुःख का है खेल जिन्दगी
धूप छाँव का मेल जिन्दगी
दुःख से दूरी सभी चाहते
सुख के सपनों में खो जाते |
नशा सुख का मद में बदलता
अहंकार भी बढ़ने लगता
मदहोशी जब बढ़ती जाती
लिप्त उसी में हो रहते |
सोच संकुचित होने लगता
प्रत्येक वस्तु का मोल लगाते
गरूर जब पैसे का होता
रंग रलियों में होते लिप्त |
आधुनिकता की दौड़ में
कैसे पीछे रह जाते
छीन झपट धन संचय करते
पर आत्मसंतोष नहीं पाते |
और अधिक पाने की चाह में
झूठ की दुकान लगाते
उससे जब मन भर जाता
मनमानी करने लगते
बेईमानी पर उतर आते |
आशा