16 दिसंबर, 2011

कैसा अलाव कैसा जाड़ा


सर्दी का मौसम ,जलता अलाव

बैठे लोग घेरा बना कर

कोइ आता कोइ जाता

बैठा कोइ अलाव तापता |

आना जाना लगा रहता

फिर भी मोह छूट न पाता

क्यूँ कि कड़ी सर्दी से

है गहरा उसका नाता |

एक किशोर करता तैयारी

मार काम की उस पर भारी

निगाहें डालता ललचाई

पर लोभ संवरण कर तुरंत

चल देता अपने मार्ग पर |

कैसा अलाव कैसा जाड़ा

उसे अभी है दूर जाना

अब जाड़ा उसे नहीं सताता

है केवल काम से नाता |

आशा

14 दिसंबर, 2011

छुईमुई

बाग बहार सी सुन्दर कृति ,
अभिराम छवि उसकी |
निर्विकार निगाहें जिसकी ,
अदा मोहती उसकी ||
जब दृष्टि पड़ जाती उस पर ,
छुई मुई सी दिखती |
छिपी सुंदरता सादगी में,
आकृष्ट सदा करती ||
संजीदगी उसकी मन हरती,
खोई उस में रहती |
गूंगी गुडिया बन रह जाती ,
माटी की मूरत रहती ||
यदि होती चंचल चपला सी ,
स्थिर मना ना रहती |
तब ना ही आकर्षित करती ,
ना मेरी हो रहती ||
आशा


11 दिसंबर, 2011

अनूठा सौंदर्य


बांह फैलाए दूर तलक
बर्फ से ढकीं हिमगिर चोटियाँ
लगती दमकने कंचन सी
पा आदित्य की रश्मियाँ |
दुर्गम मार्ग कच्चा पक्का
चल पाना तक सुगम नहीं
लगा ऊपर हाथ बढाते ही
होगा अर्श मुठ्ठी में |
जगह जगह जल रिसाव
ऊपर से नीचे बहना उसका
ले कर झरने का रूप अनूप
कल कल मधुर ध्वनि करता |
जलधाराएं मिलती जातीं
झील कई बनती जातीं
नयनाभिराम छबी उनकी
मन वहीँ बांधे रखतीं |
कभी सर्द हवा का झोंका
झझकोरता सिहरन भरता
हल्की सी धुप दिखाई देती
फिर बादलों मैं मुंह छिपाती |
एकाएक धुंध हो गयी
दोपहर में ही शाम हो गयी
अब न दीखता जल रिसाव
ना ही झील ना घाटियाँ |
बस थे बादल ही बादल
काले बादल भूरे बादल
खाई से ऊपर आते बादल
आपस में रेस लगाते बादल
मन में जगा एक अहसास
होते हैं पैर बादलों के भी
आगे बढ़ने के लिए
आपस में होड़ रखते हैं
आगे निकलने के लिए |
आशा