16 दिसंबर, 2011

कैसा अलाव कैसा जाड़ा


सर्दी का मौसम ,जलता अलाव

बैठे लोग घेरा बना कर

कोइ आता कोइ जाता

बैठा कोइ अलाव तापता |

आना जाना लगा रहता

फिर भी मोह छूट न पाता

क्यूँ कि कड़ी सर्दी से

है गहरा उसका नाता |

एक किशोर करता तैयारी

मार काम की उस पर भारी

निगाहें डालता ललचाई

पर लोभ संवरण कर तुरंत

चल देता अपने मार्ग पर |

कैसा अलाव कैसा जाड़ा

उसे अभी है दूर जाना

अब जाड़ा उसे नहीं सताता

है केवल काम से नाता |

आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. कैसा अलाव कैसा जाड़ा

    उसे अभी है दूर जाना

    अब जाड़ा उसे नहीं सताता

    है केवल काम से नाता |

    सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति.
    कर्मयोग की आशा जगाती.

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  2. नित जीवन से प्रेरित रचना ....

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  3. pet ki aag kaam ki chinta gareeb ko kanha sardi garmi ka ehsaas dilaati hai.bahut uttam bhaav liye hue yeh rachna.bahut badhia.

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  4. फिर भी मोह छूट न पाता

    क्यूँ कि कड़ी सर्दी से

    है गहरा उसका नाता |
    वाह, कमाल की पंक्तियाँ हैं !
    आभार !!!!

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  5. यथार्थ ..काम पर जाने वाले लोग कहाँ अलाव पर तापने के लिए रुक पाते हैं ..

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  6. कैसा अलाव कैसा जाड़ा

    उसे अभी है दूर जाना

    अब जाड़ा उसे नहीं सताता

    है केवल काम से नाता |

    ....बहुत सच...आज किस के पास समय है अलाव के पास बैठ कर हाथ तापने का...

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  7. बेहद खुबसूरत..इस जाड़ा में अलाव सी रचना ..

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  8. यथार्थ को उकेरती बहुत सुन्दर रचना ! सच में कई लोग सख्त सर्दी में भी अलाव तापने जैसी विलासिता के लिये समय नहीं निकाल पाते ! उनके लिये कर्मस्थली की सेवा ही सबसे बड़ी विवशता है जो दो वक्त की रोटी उपलब्ध कराती है ! सुन्दर रचना !

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  9. जाड़े के मौसम में टिप्पणी की गर्माहट और ऊर्जा दे गयी |आप सब का धन्यवाद इस ब्लॉगमें इस रचना पर टिप्पणी करने के लिए |
    आशा

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  10. ▬● अच्छा लगा आपकी पोस्ट को देखकर... साथ ही आपका ब्लॉग देखकर भी अच्छा लगा... काफी मेहनत है इसमें आपकी...
    नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आपके लिए सपरिवार शुभकामनायें...

    समय निकालकर मेरे ब्लॉग्स की तरफ भी आयें तो मुझे बेहद खुशी होगी...
    [1] Gaane Anjaane | A Music Library (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
    [2] Meri Lekhani, Mere Vichar..
    .

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