है कैसा पाषाण सा
भावना शून्य ह्रदय लिए
ना कोइ उपमा ,अलंकार
या आसक्ति सौंदर्य के लिए |
जब भी सुनाई देती
टिकटिक घड़ी की
होता नहीं अवधान
ना ही प्रतिक्रया कोई |
है लोह ह्रदय या शोला
या बुझा हुआ अंगार
सब किरच किरच हो जाता
या भस्म हो जाता यहाँ |
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में |
ना उमंग ना कोई तरंग
लगें सभी ध्वनियाँ एकसी
हृदय में गुम हो जातीं
खो जाती जाने कहाँ |
कभी कुछ तो प्रभाव होता
पत्थर तक पिधलता है
दरक जाता है
पर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान |
आशा
भावना शून्य ह्रदय लिए
ना कोइ उपमा ,अलंकार
या आसक्ति सौंदर्य के लिए |
जब भी सुनाई देती
टिकटिक घड़ी की
होता नहीं अवधान
ना ही प्रतिक्रया कोई |
है लोह ह्रदय या शोला
या बुझा हुआ अंगार
सब किरच किरच हो जाता
या भस्म हो जाता यहाँ |
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में |
ना उमंग ना कोई तरंग
लगें सभी ध्वनियाँ एकसी
हृदय में गुम हो जातीं
खो जाती जाने कहाँ |
कभी कुछ तो प्रभाव होता
पत्थर तक पिधलता है
दरक जाता है
पर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान |
आशा
पाषाण ही जीवन को एक ठोस धरातल देते हैं ! इनसे व्यक्ति को आधार, सुरक्षा और हिम्मत मिलती है क्योंकि ये हमारी शक्ति को बढाते हैं ! इनसे कतराना व्यर्थ है ! वैसे सुन्दर रचना है जीजी ! मज़ा आया पढ़ कर !
जवाब देंहटाएंभावहीनता को परिभाषित करती सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएंbhtrin snkshipt rchnaa bdhaai ho . akhtar khan akela kotarajthan
जवाब देंहटाएंbhavshunya hona bibashta bhee ho gayi hai..bhavon kee pravnta bhavuk banati hai..bhavuk hone ke parinaam aaj kal kya hayin ..ham bakhubi parichit hain..lekin bhav biheen hona samaj ke liye shubh sanket nahi hai..sadar badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंइंसानी फितरत तो पत्थर पर भी भारी हैं .
जवाब देंहटाएंपत्थर तक पिघलता है
जवाब देंहटाएंपर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान...
सही कह रही है आपकी रचना भावनाशून्य हो गया है आज का इन्सान... आभार...
गजब की भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंगहरे भाव, वाह !!!
जवाब देंहटाएंwaah...bahut khub
जवाब देंहटाएंगहरी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसादर...
bahut achchi hai.....
जवाब देंहटाएंVery Nice post our team like it thanks for sharing
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