20 दिसंबर, 2011

सुकून

जब भी मैंने मिलना चाहा

सदा ही तुम्हें व्यस्त पाया

समाचार भी पहुंचाया

फिर भी उत्तर ना आया |

ऐसा क्या कह दिया

या की कोइ गुस्ताखी

मिल रही जिसकी सजा

हो इतने क्यूँ ख़फा |

है इन्तजार जबाव का

फैसला तुम पर छोड़ा

हैं दूरियां फिर भी

फरियाद अभी बाकी है |
यूँ न बढ़ाओ उत्सुकता

कुछ तो कम होने दो

है मन में क्या तुम्हारे

मौन छोड़ मुखरित हो जाओ |

हूँ बेचैन इतना कि

राह देखते नहीं थकता

जब खुशिया लौटेंगी

तभी सुकून मिल पाएगा |

आशा

15 टिप्‍पणियां:

  1. intjaar ka bhi apna ek maja hai basharte intjaar bahut lambaa na ho.bahut sundar bhaav pyaari rachna.

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  2. इंतज़ार के बाद मिलने का और भी आनंद है ..ज्यादा सुकूं मिलेगा
    अच्छी प्रस्तुति

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  3. अहसासों की एक सुन्दर रचना.....

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  4. premi dil kee tadpan ka yatharth chirtran..sadar badhayee..meri nayi post par aapka swagat hai

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  5. मन की अधीरता स्पष्ट दिखाई देती है ! मन की विकलता को सुन्दर शब्दों में गूंथा है ! अति सुन्दर !

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  6. कल 23/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. इंतेहा होगी इंतज़ार कि .... :-) इंतज़ार के एहसासों से सजी बहुत ही सुंदर पोस्ट... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_19.html
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  8. प्रेमी मन की व्यथा का सुन्दर वर्णन

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