जब भी मैंने मिलना चाहा
सदा ही तुम्हें व्यस्त पाया
समाचार भी पहुंचाया
फिर भी उत्तर ना आया |
ऐसा क्या कह दिया
या की कोइ गुस्ताखी
मिल रही जिसकी सजा
हो इतने क्यूँ ख़फा |
है इन्तजार जबाव का
फैसला तुम पर छोड़ा
हैं दूरियां फिर भी
यूँ न बढ़ाओ उत्सुकता
कुछ तो कम होने दो
है मन में क्या तुम्हारे
मौन छोड़ मुखरित हो जाओ |
हूँ बेचैन इतना कि
राह देखते नहीं थकता
जब खुशिया लौटेंगी
तभी सुकून मिल पाएगा |
आशा
intjaar ka bhi apna ek maja hai basharte intjaar bahut lambaa na ho.bahut sundar bhaav pyaari rachna.
जवाब देंहटाएंगहरे अहसास।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
इंतज़ार के बाद मिलने का और भी आनंद है ..ज्यादा सुकूं मिलेगा
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
अहसासों की एक सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंpremi dil kee tadpan ka yatharth chirtran..sadar badhayee..meri nayi post par aapka swagat hai
जवाब देंहटाएंमन की अधीरता स्पष्ट दिखाई देती है ! मन की विकलता को सुन्दर शब्दों में गूंथा है ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंintzaar,intzaar or intzaar.....jeevan mei
जवाब देंहटाएंsaral aur sunder.....
जवाब देंहटाएंकल 23/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
गहरे भाव....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
सादर
इंतेहा होगी इंतज़ार कि .... :-) इंतज़ार के एहसासों से सजी बहुत ही सुंदर पोस्ट... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंhttp://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_19.html
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
intzar kisi bhi baat k liye ho jab tak vo apni manzil n paa le...khusi poornta nahi pati.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंgaae bhav se lokhi sundar kavita...
जवाब देंहटाएंप्रेमी मन की व्यथा का सुन्दर वर्णन
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