23 दिसंबर, 2011

अंदाज अलग जीने का

हूँ स्वप्नों की राज कुमारी

या कल्पना की लाल परी

पंख फैलाए उडाती फिरती

कभी किसी से नहीं डरी |

पास मेरे एक जादू की छड़ी

छू लेता जो भी उसे

प्रस्तर प्रतिमा बन जाता

मुझ में आत्म विशवास जगाता |

हूँ दृढ प्रतिज्ञ कर्तव्यनिष्ठ

हाथ डालती हूँ जहां

कदम चूमती सफलता वहाँ |

स्वतंत्र हो विचरण करती

छली न जाती कभी

बुराइयों से सदा लड़ी

हर मानक पर उतारी खरी |

पर दूर न रह पाई स्वप्नों से

भला लगता उनमें खोने में

यदि कोइ अधूरा रह जाता

समय लगता उसे भूलने में |

दिन हो या रात

यदि हो कल्पना साथ

होता अंदाज अलग जीने का

अपने मनोभाव बुनने का |

आशा

11 टिप्‍पणियां:

  1. utsaah se lavrej kavita..sunder prastuti..sadar badhayee aaur apne blog par amantran ke sath

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  2. जी हाँ यदि कल्पना साथ हो तो अंदाज अलग हो जाता है जीने का... कल्पना की उड़ान ऐसी ही होती है... सुन्दर रचना

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  3. कल्पना इस राजकुमारी का बिंदास अंदाज़ बहुत अच्छा लगा ! जीवन इतना ही खूबसूरत हो जाये तो क्या बात है ! सुन्दर रचना के लिये बधाई !

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  4. हूँ स्वप्नों की राज कुमारी
    या कल्पना की लाल परी
    पंख फैलाए उडाती फिरती
    कभी किसी से नहीं डरी |

    वाह! बहुत सुन्दर रचना....
    सादर.

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  5. दिन हो या रात

    यदि हो कल्पना साथ

    होता अंदाज अलग जीने का

    अपने मनोभाव बुनने का |


    बेहतरीन


    सादर

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  6. हूँ स्वप्नों की राज कुमारी
    या कल्पना की लाल परी
    पंख फैलाए उडाती फिरती
    कभी किसी से नहीं डरी |

    आत्मविश्वास से भरी रचना...

    खूबसूरत...!

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  7. ख़ूबसूरत प्रस्तुति,सादर.

    मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अनुगृहीत करें.

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  8. जादू की छड़ी ,प्रस्तर प्रतिमा सुन्दर बिम्ब लिए सुन्दर रचना .

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