हूँ स्वप्नों की राज कुमारी
या कल्पना की लाल परी
पंख फैलाए उडाती फिरती
कभी किसी से नहीं डरी |
पास मेरे एक जादू की छड़ी
छू लेता जो भी उसे
प्रस्तर प्रतिमा बन जाता
मुझ में आत्म विशवास जगाता |
हूँ दृढ प्रतिज्ञ कर्तव्यनिष्ठ
हाथ डालती हूँ जहां
कदम चूमती सफलता वहाँ |
स्वतंत्र हो विचरण करती
छली न जाती कभी
बुराइयों से सदा लड़ी
हर मानक पर उतारी खरी |
पर दूर न रह पाई स्वप्नों से
भला लगता उनमें खोने में
यदि कोइ अधूरा रह जाता
समय लगता उसे भूलने में |
दिन हो या रात
यदि हो कल्पना साथ
होता अंदाज अलग जीने का
अपने मनोभाव बुनने का |
आशा
utsaah se lavrej kavita..sunder prastuti..sadar badhayee aaur apne blog par amantran ke sath
जवाब देंहटाएंजी हाँ यदि कल्पना साथ हो तो अंदाज अलग हो जाता है जीने का... कल्पना की उड़ान ऐसी ही होती है... सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकल्पना इस राजकुमारी का बिंदास अंदाज़ बहुत अच्छा लगा ! जीवन इतना ही खूबसूरत हो जाये तो क्या बात है ! सुन्दर रचना के लिये बधाई !
जवाब देंहटाएंहूँ स्वप्नों की राज कुमारी
जवाब देंहटाएंया कल्पना की लाल परी
पंख फैलाए उडाती फिरती
कभी किसी से नहीं डरी |
वाह! बहुत सुन्दर रचना....
सादर.
दिन हो या रात
जवाब देंहटाएंयदि हो कल्पना साथ
होता अंदाज अलग जीने का
अपने मनोभाव बुनने का |
बेहतरीन
सादर
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंहूँ स्वप्नों की राज कुमारी
जवाब देंहटाएंया कल्पना की लाल परी
पंख फैलाए उडाती फिरती
कभी किसी से नहीं डरी |
आत्मविश्वास से भरी रचना...
खूबसूरत...!
ख़ूबसूरत प्रस्तुति,सादर.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अनुगृहीत करें.
जादू की छड़ी ,प्रस्तर प्रतिमा सुन्दर बिम्ब लिए सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंwaah! behd pyaari rachna hai...bdhai...
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