08 दिसंबर, 2018

मेरा साया



दिनभर  व्यस्तता रहती
समय नहीं मिलता
कभी  कुछ सोचने का
भरी दोपहर में खड़ी
 विचार शून्य सी
मैं सोच रही चौराहे पर
सर पर तपते सूरज की किरणें
खुद का साया जो सदा
 साथ रहने का वादा करता
अभी साथ नहीं है
न जाने क्यूँ ?
साया बहुत लंबा होता  
आगे आगे चलता था
फिर छोटा होता गया
अब मेरे कदमों में छिप  कर
अंतरध्यान  हो गया है
बातें उसकी झूटी निकलीं
किसी ने सच कहा है
साथ चलने के लिए ही
आवश्यकता होने पर
सही समय आने पर   
अपना साया भी साथ नहीं है |

चहरे पर दिखाई देते




 
 चेहरे पर भाव विषाद के
किसी को क्या दिखाना
साथ में हंसता खिलखिलाते
 चेहरे की झंडी हाथ में लिए घूमते
कोई नहीं जानता किस लिए ?
दो भाव एक साथ क्यूँ ?
क्या है यह एक राज
जिसे बांटना नहीं चाहते
किसी गैर के साथ शायद
इसी लिए या कोई और कारण
जिसे छुपाने की कोशिश
कर रहे बेकार किस लिए ?
अंतस में भभकती आग
अन्दर बाहर कितना अंतर
मुंह पर स्पष्ट झलकता विषाद
फिर भी कोशिश खुश होने की
अंतस में भभकती ज्वाला को
जीवित ही रखने की चाह
आखिर किस लिए ?
आशा

06 दिसंबर, 2018

शहनाई



प्रातः काल तबले की थाप
और  शहनाई वादन   
बड़ा सुन्दर नजारा  होता
 शुभ कार्यों का शुभारम्भ होता
प्रभाती का प्रारम्भ
 शहनाई से ही होता
 ध्वनि इतनी मधुर होती कि
कोई कार्य करने का
 मन ही न होता
केवल उसे सुनने के अलावा 
विवाह के रीत रिवाजों का सिलसिला
खुशी खुशी  प्रारम्भ होता
शहनाई होती जान
 किसी भी कार्यक्रम की
जब होती जुगलबंदी
 तबले और शहनाई वादन की  
 स्वर के  उतार चढ़ाव के साथ 
तबले की थाप की होती जुगलबंदी  
श्रोता को मन्त्र मुग्ध कर देतीं
शहनाई के स्वर मन को छू जाते
  यादों में सिमट जाते
 सुख हो या दुःख के कारज
यह  दोनो ही में बजती 
इसका वादन शुभ शगुन होता
है अनुपम वाद्य शहनाई 
मन में बज उठती  शहनाई
जब भी कोई   शुभ घड़ी आती|

आशा