01 जून, 2023

ऊंची उड़ान कविता की भरी

 भरी उड़ान पूरी क्षमता से 

किसी की कोई मदद ना चाही 

जब उच्चतम स्तरपहुंची 

ख़ुशी मिली हम को |   

छाछ पी ली फूँक फूँक कर 

चाहे दूध ठंडा  ही रहा 

कल्पना में इसे उबाला है 

जब कि यूँ तो ना  आ रहा ख्याल मेरा |

यहीहै  जिन्दगी का दोहरा रंग 

जिससे बच  कर चली हूँ 

पतंग उड़ाना भी एक कला है 

यह तह भूली नहीं हूँ |

किसी नव गीत का सम्मान किया 

अपने बुद्धि के कौशल से 

या कोई नई विधा से कुछ सीखा है |

नई  विधा पर कुछ लिखना 

उस पर अपनी कलम चलाना 

अपनी ही कोशिश से |

सफलता ने दुलारा हैमुझको  

बहुत आशीष दिया है 

हूँ आज जिस स्थान पर खड़ी

वह नवाजा गया है मुझे 

सम्मान किया गया है |

आशा सक्सेना 

28 मई, 2023

कल्पना के इस दौर में

कल्पना के इस दौर  में

कैसे दूर रहूँ उससे सब ने समझाया भी इतना

कभी कहने में आई यही बात

मन को ना  भाई कैसे |

कविता का कोई रूप नहीं होता

केवल भावनाएं ही होतीं प्रवल 

सुन्दर शब्दों से सजी कविता 

 मन में हिलोरे खा रही है |

प्यार से सजी हुई है

दिलों दीवार में घुमड़ा  रही हैं

कभी नदिया सी बेखौफ  बह रही हैं

अपनी राह से है लगाव इतना

आगे आने वाले राह नहीं भटकते |

यही मन को रहा एहसास

पर मुझे भय नहीं है

अपने ऊपर आत्मविश्वास है इतना

कभी पैर ना फिसले ताकत से रहे भर पूर

यही है अभिलाषा मेरी|

चंचल चपला सी  नदिया 

 प्रकृती में पथ खोज रही है

देती है महत्व उसकी लहराती चाल को 

दीखती है उन्मुक्त बहती नदिया जैसी 

चार चाँद से जोड़े हैं नदियों के उन्मुक्त प्रवाह में| 

आनंद से भर गई मैं प्रकृति के प्रागंन  में 

यही आशा थी मुझको अपनी सोच से

 मुझे एक संबल मिला है आज के इस दौर मैं

जिसे पा कर मैं खुशियों से भर उठी हूँ 

अपने विश्वास पर अडिग खडी  हूँ  मैं |

 मुझे यह गुमान हुआ है कभी किसी ने प्यार ही 

नहीं किया मुझको जब कि मैंने सब कुछ छोड़ा उनपर |

अब लगने लगा है मानों मेरा वजूद ही नहीं 

जी रही हूँ एक बेजान गुडिया सी इस भव सागर में 

कभी खुद का एहसास भीं ना  होगा कल्पना के इस दौर में


आशा सक्सेना