22 अक्टूबर, 2021
क्षणिकाएं
मौसम चुनाव का
मचा हुआ कोहराम सड़क पर
पीछे बड़ा जन समूह है
मौसम वोट माँगने का आया है
आगे आगे नेता है पीछे हुजूम है |
कितने वादे किये कितने रहे शेष
सब का लेखा जोखा देना है
फिर से नये वादे करना हैं
वोट की राजनीति से अनिभिग्य नहीं है |
रुख किस ओर करवट लेगा
किस पार्टी का परचम फहराएगा
अभी तक स्पष्ट नहीं है
फिर भी प्रयत्नों में कोई कमीं नहीं है |
एक दिन ही शेष है इन प्रपंचों के लिए
फिर घर घर जा कर नेता जी करेंगे प्रणाम
जाने कितने प्रलोभन देंगे एक वोट के लिए
पर चुनाव समाप्त होते ही भूल जाएंगे वादे |
गली मोहल्ला भी याद न रहेगा
अगले चुनाव के आने तक
व्यस्त हो जाएंगे अपना घर भरने में
चारों हाथ पैरों से जनता को लूटने में |
आशा
21 अक्टूबर, 2021
वर्ण पिरामिड
ना
मानो
हम हैं
तुम्हारे ही
कोई और नहीं
वह दूर हो गया है
किसी से लगाव नहीं है|
है
तेरा
जलवा
स्वप्न जैसा
कोई न मिला
बड़ा यत्न किया
कभी किसी से न सीखा
लक्ष्य तक पहुँचने में |
है
मेरा
विचार
सोच का है
ढंग अनूठा
किसी से मिलता
नहीं तो क्या सोचना
20 अक्टूबर, 2021
शरद पूर्णिमा
ओ शरद पूनम के चाँद
तुम आए ठंडी हवा के साथ
मैंने खीर का भोग लगाया है
अमृत वर्षा के लिए है |
ऐसी है क्या बात
मिठास दुगुनी हो जाती
मिलते ही रात्रि में
तुम्हारी चांदनी का साथ |
जाने कितने रोगों का
उपचार है तुम्हारे पास
तुम हो अदभुद चिकित्सक
उन के जिनने सेवन किया प्रसाद
श्वास जैसे मर्ज के लिए |
सफल साहित्यिक आयोजन
किये जाते हर वर्ष
जब तुम आते
नृत्य निशा भी आयोजित होती आज |
गीतों का आनंद ही कुछ और होता
तुम्हारी छत्र छाया में
सभी मनोयोग से हिस्सा लेते
इस आयोजन में |
शरद पूर्णिमा की चमक अनोखी
मन मोह रही है
चंद्रमा की रश्मियाँ झलक रही हैं
मौसम रंगीन हुआ है आज |
आशा
19 अक्टूबर, 2021
कुनकुनी धुप
कुनकुनी धूप खिली है वादियों में
रश्मियों ने पैर पसारे घर के आँगन में
प्रातः का मंजर सुहाना हो गया
गीत गाए दिल खोल परिंदों ने |
व्योम भरा है उड़ते पक्षियों के गुंजन से
अनोखी छटा छाई है लाल सुनहरे अम्बर में
झूमती खेतों में बालियाँ दृश्य मनोरम है
लयबद्ध कलरव उड़ते उडगन का मन को बांधे हैं |
प्रातः की बेला में जब मंद हवाओं के झोके आए
आदित्य चला देशाटन को रथ पर हो कर सवार
धूप का आनंद उठाते जीव जीवन्त हो जाते
सब कार्यों में व्यस्त हो जाते आगमन भोर का होते ही |
गृहणियां चौके में जातीं वहां का कार्य प्रारम्भ करतीं
बच्चे भी दौड़े आते हलुए की फरमाइश करते
जब अल्पाहार करते चहरे पर मुस्कान लिए
भाव संतुष्टि के आते बड़ा सुकून देते |
18 अक्टूबर, 2021
भमर क्यों फूलों पर मंडराते
भ्रमर तुम फूलों पर क्यों मंडराते
उनके मोह में बंध कर रह जाते
उन पुष्पों में ऐसे बंधते
कभी बंधन मुक्त न हो पाते |
तुमसे तितलियाँ हैं बुद्धिमान बहुत
पुष्पों से मधु रस का आनंद लेतीं
और दूसरे के पास उड़ जातीं
होती स्वतंत्र किसी बंधन में न बंधती |
इतनी मोहक रंगबिरंगी तितलियाँ जब उड़तीं
सुन्दर छवि हो जाती वहां की
एक फूल से दूसरे पर जाने से
मकरन्ध की सुगंध बगिया में उड़ती |
भवरे तुम काले हो सुन्दर नहीं
तितलियों से क्या तुलना करते
तुम्हारा गुंजन भी नहीं मधुर
जब फँसते माली के चंगुल में तब पछताते |