रात अंधेरी गहराता तम
सांय सांय करती हवा
सन्नाटे में सुनाई देती
भूले भटके आवाज़ कोइ
अंधकार में उभरती
निंद्रारत लोगों में कुछ को
चोंकाती विचलित कर जाती
तभी हुआ एक दीप प्रज्वलित
तम सारा हरने को
मन में दबी आग को
हवा देने को
लिए आस हृदय में
रहा व्यस्त परोपकार में
जानता है जीवन क्षणभंगुर
पर सोचता रहता अनवरत
जब सुबह होगी
आवश्यकता उसकी न होगी
यदि कार्य अधूरा छूटा भी
एक नया दीप जन्म लेगा
प्रज्वलित होगा
शेष कार्य पूर्ण करेगा
सुखद भविष्य की
कल्पना में खोया
आधी रात बाद सोया
एकाएक लौ तीव्र हुई
कम्पित हुई
इह लीला समाप्त हो गयी
परम ज्योति में विलीन हो गयी |
आशा