19 मार्च, 2012

जाना है चले जाना

वह राह दिखाई देती है 
जाने से किसने रोका है 
यह प्यार है कोइ सौदा नहीं
जाना है चले जाना 
पर लौट कर न आना 
अच्छा नहीं लगता 
हर बात दोहराना 
बेसिरपैर की बातों को 
दूर तक ले जाना 
कटुता  बढती जाएगी 
कभी कम न हो पाएगी 
साथ साथ  रहते रहते 
यदि  कम भी हुई तो क्या
जाने कब सर उठाएगी 
उठे हुए सवालों का 
सुलझाना इतना सरल नहीं 
जब कोइ समानता नहीं 
क्या लाभ लोक दिखावे का 
केवल नाम के लिए 
ऐसा रिश्ता ढोने का 
है  रीत जग की यही 
जो जैसा है बदल नहीं सकता
स्वीकार  करे  या न करे 
यह खुद पर निर्भर करता है
दो प्यार करने वालों का
हश्र यही  होता है |
आशा




22 टिप्‍पणियां:

  1. वाह आशा जी.....

    जाना है चले जाना
    पर लौट कर न आना
    अच्छा नहीं लगता
    हर बात दोहराना

    बहुत बढ़िया....एकदम सीधी बात....
    सादर.

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  2. उठे हुए सवालों का
    सुलझाना इतना सरल नहीं
    जब कोइ समानता नहीं
    क्या लाभ लोक दिखावे का...
    बहुत गंभीर बात कही है आपने रचना के माध्यम से... सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्पिणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

    जवाब देंहटाएं
  4. गहरे भाव ... सुन्दर अभिब्यक्ति.

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  5. सुन्दर भाव भरी रचना....
    सादर बधाई...

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  6. ........बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्तुति...बेहतरीन कविता

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  7. यथार्थपरक रचना ,मन की कशमकश को उजागर करती हुई !

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  8. जीवन की धूप छाँव से रू ब रू कराती बेहतरीन रचना ! कुछ सच्चाइयाँ ऐसी होती हैं जिनको स्वीकारने के अलावा कोई अन्य उपाय नहीं होता ! सुन्दर रचना !

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