तुझ से लिपट कर सोने में
जो सुकून मिलता था
तेरी थपकियों का जो प्रभाव होता था
वह अब कहाँ |
जब बहुत भूख सताती थी
सहन नहीं कर पाती थी
तब रोटी में नमक लगा
पपुआ बना
जल्दी से खिलाती थी
मेरा सर सहलाती थी |
वह छुअन वह ममता
अब कहाँ |
जब स्कूल से आती हूँ
बेहाल थकी होती हूँ
कुछ खाने का सोचती भी हूँ
पर मन नहीं होता
तेरे हाथों से बने खाने का
अब स्वाद कहाँ |
जब भी शैतानी करती थी
तू कान गरम करती थी
आज भी यदि गलती हो
जल्दी से हाथ कान तक जाए
पर तेरे हाथों का स्पर्श
अब कहाँ |
तू बसी है मन के हर कौने में
मुझ से दूर गयी तो क्या
तेरी दुआ ही है संबल मेरा
माँ होने का अहसास क्या होता है
मैं माँ हो कर ही जान पाई
तेरी कठिन तपस्या का
मोल पहचान पाई
पर अब क्या |
तूने कितने कष्ट सहे
मुझे बड़ा करने में
मेरा व्यक्तित्व निखारने में
आज बस सोच ही पाती हूँ
वे दिन अब कहाँ |
आशा
जो सुकून मिलता था
तेरी थपकियों का जो प्रभाव होता था
वह अब कहाँ |
जब बहुत भूख सताती थी
सहन नहीं कर पाती थी
तब रोटी में नमक लगा
पपुआ बना
जल्दी से खिलाती थी
मेरा सर सहलाती थी |
वह छुअन वह ममता
अब कहाँ |
जब स्कूल से आती हूँ
बेहाल थकी होती हूँ
कुछ खाने का सोचती भी हूँ
पर मन नहीं होता
तेरे हाथों से बने खाने का
अब स्वाद कहाँ |
जब भी शैतानी करती थी
तू कान गरम करती थी
आज भी यदि गलती हो
जल्दी से हाथ कान तक जाए
पर तेरे हाथों का स्पर्श
अब कहाँ |
तू बसी है मन के हर कौने में
मुझ से दूर गयी तो क्या
तेरी दुआ ही है संबल मेरा
माँ होने का अहसास क्या होता है
मैं माँ हो कर ही जान पाई
तेरी कठिन तपस्या का
मोल पहचान पाई
पर अब क्या |
तूने कितने कष्ट सहे
मुझे बड़ा करने में
मेरा व्यक्तित्व निखारने में
आज बस सोच ही पाती हूँ
वे दिन अब कहाँ |
आशा