04 जून, 2013

आवास आत्मा का

अस्थि मज्जा से बना यह पिंजर 
प्राण वायु से सिंचित 
दीखता  सहज सुन्दर 
आकृष्ट सभी को करता |
पर कितना असहाय क्षणभंगुर
कष्टों को  सह नहीं पाता
तिल तिल मिटता
बेकल रहता तिलामिलाता
किरच किरच बिखरता शीशे सा
यहीं निवास अक्षय आत्मा का 
है आभास उसे
 पिंजर के स्वभाव का |
ओढ़े रहती  अभेद्य कवच 
कभी क्षय नहीं होती 
एक से अलग होते ही 
दूसते घर की तलाश करती
अपना स्वत्व मिटने न देती |
है कितना आश्चर्य 
पिंजर नश्वर पर वह नहीं 
होते ही मुक्त उससे 
समस्त ऊर्जा समेत 
उन्मुक्त पवन सी
अनंत में विचरण करती 
सदा सोम्य बनी रहती |
जैसे ही तलाश पूर्ण होती
पिछला सब कुछ भूल
नवीन कलेवर धारण करती 
नई डगर पर चल देती |
आशा