12 अक्टूबर, 2011

चाहत


आँखें उसकी नील कमल सी
और कशिश उनकी ,
जब खींचेगीं बाँध पाएंगी
होगी परिक्षा उनकी |
उनका उठाना और झुक जाना
गहराई है झील की
आराधना और इन्तजार
चाहत है मन मीत की |
जाना न होगा दूर कहीं
किसी जन्नत के लिए
दूरियां घटती जाएँगी
पास आने के लिए |
कल्पनाओं की उड़ान मेरी
परवान चढती जाएगी
अब रोज ही त्यौहार होगा
आएगी घर में खुशी |
आशा


10 अक्टूबर, 2011

हूँ मैं एक आम आदमी


होने को है आज
अनोखा त्यौहार दीपावली का
अभिनव रंग जमाया है
स्वच्छता अभियान ने |
दीवारों पर मांडने उकेरे
और अल्पना द्वारों पर
है प्रभाव इतना अदभुद
हर कौना चमचमाया है |
बाजारों में आई रौनक
गहमा गहमी होने लगी
पर फिर भी सबके चेहरों पर
पहले सा उत्साह नहीं |
मंहंगाई की मार ने
आसमान छूते भावों ने
और सीमित आय ने
सोचने को बाध्य किया |
फीका स्वाद मिठाई का
नमकीन तक मंहंगा हुआ
उपहारों की क्या बात करें
सर दर्द से फटने लगा |
लगती सभी वस्तुएँ आवश्यक
रोज ही लिस्टें बनती है
पहले सोचा है व्यर्थ आतिशबाजी
पर बच्चे समझोता क्यूं करते
यदि मना किया जाता
वे उदास हो जाते |
हर बार सोचता हूँ
सबकी इच्छा पूरी करूँ
ढेरों खुशियाँ उनको दूं
पर सोच रह जाता अधूरा |
क्यूँ उडूं आकाश में
हूँ तो मैं एक आम आदमी
और भी हें मुझसे
मैं अकेला तो नहीं
जो जूझ रहा मंहंगाई से |

आशा



09 अक्टूबर, 2011

है अदभुद अहसास


है कितना सुन्दर सुखद
अदभुद अहसास तेरे आगमन का
और मिठास की कल्पना
तेरी खनकती आवाज की |
जब होती हलचल सी
रहती बस यही कल्पना
जल्दी से तू आए
मेरी गोदी में छुप जाए |
कभी ठुमक ठुमक नाचे
गाये तोतली भाषा में
खिलखिलाए बातें बनाए
मेरे घर के आँगन में |
नन्हीं सी बाहें जब फैलाए
गोदी में उठालूँ
बाहों में झुलाऊ
बाँध लूं प्यार से बंधन में |
काले कजरारे नयनों पर
यदि बालों की लटआए
जल्दी से उन्हें सवारूँ
बांधूं लाल रिबिन से |
काजल का दिठोना
लगा भाल पर
तुझे बचाऊँ दुनिया की
बुरी नजर से |
हो चाँद सी उजली सूरत
सीरत किसी देवी सी
तू चले महुआ महके
हँसे तो फूल झरे |
जब अश्रु आँखों में आएं
तुझे कहीं आहत कर जाएँ
अपने आँचल से पोंछ डालूं
आने न दूं उन्हें तेरी जिंदगी में |
तू जल्दी से आ जा
मेरी जिंदगी में
दुनिया चाहे गुड्डा
पर तू है चाहत मेरी |
आशा