कान्हां ने काली कमली पहनी
बाँसुरी ली हाथ बन मैं बजाई
मधुर धुन जब सुनी ग्वालों ने
दौड़े चले आए वहां पर |
धेनु चराई शाम तक
घर को चले थके हारे ग्वाले
गायों को भी भूख लगी थी
घर पर दाना पानी का प्रवंध किया
राधाने नाराजगी जताई
रूठी रहीं बात न की
कड़ी धुप में तुम मुरझा जातीं
तुम क्या जानो ठंडी हवा में
वन में घूमने का आनंद
कृष्ण ने समझाया
कल ले चलने का वादा किया
तब जाके मन पाईं राधा |
आशा सक्सेना |