बड़ा सा दरवाजा था
लोग ठहर जाते थे
उसकी भव्यता देख |
आज है वीरान उजड़ा
सारी रौनक तिरोहित हो गई है
काली गाय दिखाई नहीं देती
नाही पीली कुत्ती का ठिकाना |
वे क्यों ठहरते अब कोई उनकी
परवाह नहीं करता
नाही लाड दुलार करता
ना समय पर खाना देता |
अंदर झाँक कर देखा
वस्तुएं सभी उथल पुथल
कोई देखता तो समझता
है कितना कठिन अकेले जीना |
दरवाजे पर एक बुजुर्ग बैठे खांस रहे थे
अकेले जीवन ढो रहे थे
एक भी व्यक्ति ऐसा ना था
जो सुख दुःख का साथी होता |
भर आईं मेरी आँखे
घर के ये हाल देख
सोचा जाकर याद दिलाऊँ
मैं अब आ गई हूँ कहीं नही जाऊंगी |
मैंने भी जमाने की ठोकरे खाई है
यहां तक आते आते
कितनी कठिनाई झेली हैं
शायद मेरे प्रारब्ध में यही लिखा था |
अब सीधी राह मिल पाई है
मुझे ख़ुशी है मै ठीक से आ गई हूँ
अपने जीवन के प्रांगन मै
अब कोई गलत राह ना पकडूगी|
आधा जीवन तो बीत गया
थोडा सा अभी बाक़ी है
उसे हरी नाम ले बिताऊँगी
अपना जीवन सफल करूंगी |
आशा सक्सेना
सार्थक संकल्प !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिय |
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