24 अप्रैल, 2021

विश्व पृथवी दिवस


 

जलचर थलचर और नभचर

 निर्जीव और सजीव सहचर

 एकत्र हो बनाते एक समुच्चय

जो कहलाता विश्व का स्वरुप

वहां भिन्न प्रजातियाँ जीवों की

आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर

करती रहतीं  वास हैं |

हर समय की  चहल पहल

जीवन्त बनाए रखती वातावरण

इसे यदि क्षति पहुंचे उसे तो कष्ट होता ही है

कितना कष्ट होता सोच प्रधान मन को |

यदि जीने की तनिक भी तमन्ना हो

आसपास की सभी  वस्तुएं होती आवश्यक

सजीव हों या निर्जीव सभी के लिए

इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता |

आवश्यक है दोहन प्रकृति का सीमित हो

और बड़े  यत्न से किया जाए

पुरानी  यादों को दोहराने के लिए

इस तरह के आयोजन किये जाते हैं |

आशा

 

 

हाइकु (कोविद )


 

१-जीवन शुष्क

ना कोई आकर्षण

बदरंग है

२-कष्टों की बेल  

आसपास पसरी

स्वप्न अधूरा  

३-महांमारी का

जब  आगाज हुआ  

सदमा लगा

४-विकट रूप  

कोविद की बापसी

रूप बदला

५- दुगुनी शक्ति

समाई है  इस में

जान न बक्शी

६- कोई भी कष्ट  

सहा जा सकता है

कोविद नहीं  


आशा 

 

23 अप्रैल, 2021

बाधाएं और जीवन


बाधाएं और जीवन

 चलते आगे पीछे

 इस तरह पास  रहते

 मानो हैं  सहोदर कभी न बिछुड़ेगे |

जब जीवन में अग्रसर होने की

 खुशी आनी होती है

बाधाएं पहले से ही  खडी होतीं

व्यवधान डालने को |

कोई कार्य सम्पन्न नहीं होता

 बिना बाधाएं पार किये

 हर बाधा से दो दो हाथकरना पड़ते

एक जुझारू व्यक्ति  की तरह |

जिसने ये  बातें जान लीं

और दिल से स्वीकारा उन्हें  

वही सफल हुआ  अपने  जीवन में

हारने से  भय कैसा  बाधाओं से |

जिसने समझ  लिया उन को

 सामंजस्य स्थापित किया उनसे

वही सफल हो पाया लड़ने में उनसे |

 है ऐसा मन्त्र बाधाओं से बचने का

जिसने सीख लिया और अपनाया 

सफलता कदम चूमती उसके

जब भी जीत हांसिल होती

 मन बल्लियों उछलता उसका  |

आशा | 

22 अप्रैल, 2021

नेता आज के

 

गलियारे सत्ता के हैं

काजल की कोठारी जेसे

जिसने भी कदम रखा उसमें

रपटता चला गया |

उसके काले रंग  में ऐसा रंगा

रगड़ कर धोने में ही

सारी अकल छट गई

समय की सुई वहीं अटकी रह गई |

ना नए चहरे ना ही कुछ नया सोच  

वही पुराने अवसरवादी नेता 

बेपैदी के लोटे जेसे

 कभी इधर कभी उधर होते |

लुढ़कते एक से दूसरी पार्टी में

जाना नहीं जा सकता   

है कैसी मानसिकता उनकी  

क्या उसूल जादू से बदल जाते हैं |

जब  नवीन पार्टी में आए  

कुछ नियम अपनाने का वादा किया

कसमें खाईं वादे  आत्मसात करने की

 हवा का रुख बदलते ही

गिरगिट सा रंग बदला |

दिखावे के लिए पूर्ण रूप से बदले

नया चेहरा उभार कर आया

 जब मुह पर मुखौटा लगाया

एक नए परिवर्तित रूप रंग में |

यही नेता अब पहचाने नहीं जाते

नए रंग रूप नए  परिवेश में

रंग ढंग सब बदले उनके इस नए रूप में

बातों में भी है बड़ा  परिवर्तन |

यही है आज के  नेता की पहिचान

 अपने लिए जीते हैं वर्तमान में

अपने हित को ही देखने की आदत है

दूसरों के हित  की नहीं सोच पाते |

आशा

 

21 अप्रैल, 2021

महफिल न सजी पहले सी






 सांझ हुई धुधलका बढ़ा

शमा जली है चले आइये

आप बिन अधूरी है महफिलेशान

जिन मक्तों में दम नहीं है

वही गाए गुनगुनाए जाते हैं

उन में कोई रस नजर नहीं आता |

फीकी  है शमा की रौशनी भी

जब परवाने न हों फिर वह तेज कहाँ

वायु वेग भी सह लिया जाता

अपने ऊपर मर मिटने  वालों के लिए |

तुम गैर नहीं हो फिर भी मुझ से यह दूरी  

यह कैंसी सजा दे रहे हो

महफिल है अधूरी तुम्हारे बिना

गजलें हुई बेसुरी तुम्हारे बिना |

  हैं  सारे गीत अधूरे साजों के बिना

जो रौनक रहा करती थी तुम्हारी उपस्थिती से

शमा थकी रात भर के जागरण से

वह भी अब विश्राम चाहती है |

 अब तो आजाइए  देर से ही सही

अभी है भोर की लालिमा   दूर बहुत

यह दूरी  पाटना कठिन न होगी  

इस महफिल को  फिर से रंगीन कर जाइए |

                                                 आशा 



20 अप्रैल, 2021

वेदना और विरह में अंतर


 

 क्या है अंतर विरह और वेदना में

दौनों में पीड़ा तो होती है

तन को हो या मन को

 कम हो या ज्यादा |

किसी ने सुझाया

उस राह पर जाना ही नहीं

जहां मन को ठेस लगे

जी जले दिल बेचैन हो |

मन की ठेस से ही विरह उपजता

कहीं और से नहीं आता

जो प्रेम करता है वह

विरह से अनजान नहीं |

 दिल चूर चूर होता कांच सा

और चुभ जाता कहीं भी

जब रक्त रंजित होता

 लहूलुहान हो जाती धरा भी |

 शारीरिक  वेदना  तो

सही जा सकती है

 मन  को लगी  चोट

 सहन नहीं होती |

यही विरह वेदना  

चाहे जब सर उठाती है

मन मस्तिष्क को

हिलाकर रख देती है  |

प्रियतम के बिछुड़ने पर

 विरह वेदना होती ऐसी कि

 ऊपर  से दिखाई नहीं देती

मन में रिसाव होता गहरा

 अवसाद गहराता जाता इतना 

और कोई इलाज नहीं इसका

केवल अपनों  की बापिसी ही

 है उपचार विरहणी का |

आशा


 

19 अप्रैल, 2021

दुविधा एक लेखिका की


 

भाव भटकते  इधर उधर 

मुझे लिखना नहीं आता 

 छन्दबद्ध करना नहीं आता

पर लिखने में रूचि है अपार पर 

कभी पैन नहीं तो कभी स्याही नहीं |

 लिपी बद्ध करने में हूँ  अकुशल  

कभी है शब्दों  अलंकारों का टोटा 

किस भाषा को चुनूं  किस विधा में लिखूं 

 यह तक निश्चित नहीं  किस से लूं जानकारी  |

प्रतिदिन सोचती हूँ सोच को पंख देने की

चाह रखती हूँ ऊंची उड़ान भरने की

 किसका ध्यान करू किसे गुरू बनाऊँ

अभी  तक निर्णय नहीं ले पाई |

कहीं पढ़ा था बिना गुरू के जीवनहै अकारथ

माया मोह से मुक्त नहीं होता

कलियुग में सकारथ जीवन न हो तब

भव सागर में कहाँ तक तैरेंगे |

जाने कब किनारे तक पहुंचेगे

इस  विशाल सागर को पार करेंगे

 शक्तिशाली  हाथ जब तक बाहँ न थामेंगा

 बेड़ा पार न  होगा |

पंख यदि गीले हो गए

 उड़ने की शक्ति खो जाएगी  

व्योम में ऊंची उड़ान भरने की केवल

 कल्पना ही रह जाएगी |

जिस हाल में दाता रखे वैसे ही जीवन चलेगा

डरने घबराने से है लाभ क्या

 जीवन है एक जुझारू पल सा  तभी सफल होगा

 जब भी  बाधाएं  निर्बिघ्न पार करेगा  |

आशा

 

18 अप्रैल, 2021

दुष्टानंद


 

होती आवश्यकता जब

 कोई साथ नहीं देता

यदि कोई कार्य सफल हो जाए

 कभी प्रशंसा  नहीं करता |

 इसी कोशिश में रहता

कहीं तो कमीं दीख जाए

जब कोई कमी दिखाई देती

दिल खोल उसे उजागर करता |

किसी भी काम की कमीं

निकाल  उजागर करने में

जो दुश्टानंद उसे मिलता

वही उसका उस दिन का

सकारात्मक कार्य होता |

कभी उसने सोचा नहीं

यदि ऐसी ही घटना

उसके साथ होती तब भी क्या

ऎसी ही प्रतिक्रया उसकी होती |

आशा