19 अप्रैल, 2021

दुविधा एक लेखिका की


 

भाव भटकते  इधर उधर 

मुझे लिखना नहीं आता 

 छन्दबद्ध करना नहीं आता

पर लिखने में रूचि है अपार पर 

कभी पैन नहीं तो कभी स्याही नहीं |

 लिपी बद्ध करने में हूँ  अकुशल  

कभी है शब्दों  अलंकारों का टोटा 

किस भाषा को चुनूं  किस विधा में लिखूं 

 यह तक निश्चित नहीं  किस से लूं जानकारी  |

प्रतिदिन सोचती हूँ सोच को पंख देने की

चाह रखती हूँ ऊंची उड़ान भरने की

 किसका ध्यान करू किसे गुरू बनाऊँ

अभी  तक निर्णय नहीं ले पाई |

कहीं पढ़ा था बिना गुरू के जीवनहै अकारथ

माया मोह से मुक्त नहीं होता

कलियुग में सकारथ जीवन न हो तब

भव सागर में कहाँ तक तैरेंगे |

जाने कब किनारे तक पहुंचेगे

इस  विशाल सागर को पार करेंगे

 शक्तिशाली  हाथ जब तक बाहँ न थामेंगा

 बेड़ा पार न  होगा |

पंख यदि गीले हो गए

 उड़ने की शक्ति खो जाएगी  

व्योम में ऊंची उड़ान भरने की केवल

 कल्पना ही रह जाएगी |

जिस हाल में दाता रखे वैसे ही जीवन चलेगा

डरने घबराने से है लाभ क्या

 जीवन है एक जुझारू पल सा  तभी सफल होगा

 जब भी  बाधाएं  निर्बिघ्न पार करेगा  |

आशा

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना। जब तक जीवन में किसी कमी कि बोध न हो, जीवन चलायमान नहीं रहती। बहती नदी और थमे समुन्दर में एक यही तो फर्क है।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया आशा जी।

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    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद पुरुषोत्तम जी |

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर रचना।
    विचारों का अच्छा सम्प्रेषण किया है
    आपने इस रचना में।

    जवाब देंहटाएं
  3. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    20/04/2021 मंगलवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार कुलदीप जी |

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  4. आदरणीया मैम, गुरु का महत्व समझाती अत्यंत सुंदर रचना। किसी भी विद्या या कला का विकास करने के लिए गुरु आवश्यक हैं पर गुरु के दर्शन शीघ्र नहीं मिलते । यह भी सच है कि किसी भी क्षेत्र में वास्तविक गुरु का मिलन कठिन हो गया है । ऐसे में सीखने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के मन में दुविधा स्वाभाविक है । हृदय से आभार इस सुंदर और आनंदकर रचना के लिए व आपको प्रणाम।

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  5. वाह ! सार्थक चिंतन एवं अत्यंत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति !

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