क्या है अंतर विरह और वेदना में
दौनों में पीड़ा तो
होती है
तन को हो या मन को
कम हो या ज्यादा |
किसी ने सुझाया
उस राह पर जाना ही
नहीं
जहां मन को ठेस लगे
जी जले दिल बेचैन हो
|
मन की ठेस से ही विरह
उपजता
कहीं और से नहीं आता
जो प्रेम करता है वह
विरह से अनजान नहीं |
दिल चूर चूर होता कांच सा
और चुभ जाता कहीं भी
जब रक्त रंजित होता
लहूलुहान हो जाती धरा भी |
शारीरिक वेदना तो
सही जा सकती है
मन को
लगी चोट
सहन नहीं होती |
यही विरह वेदना
चाहे जब सर उठाती है
मन मस्तिष्क को
हिलाकर रख देती
है |
प्रियतम के बिछुड़ने
पर
विरह वेदना होती ऐसी कि
ऊपर से
दिखाई नहीं देती
मन में रिसाव होता
गहरा
अवसाद गहराता जाता इतना
और कोई इलाज नहीं
इसका
केवल अपनों की बापिसी ही
है उपचार विरहणी का |
आशा
बहुत बहुत सराहनीय
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |
अति सुंदर सृजन दी ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
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श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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मित्रों पिछले तीन दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है।
खुुद को कमरे में कैद कर रखा है।
धन्यवाद आदरणीय
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर विश्लेषण ! बहुत बढ़िया रचना !
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