09 दिसंबर, 2009

ज़िन्दगी

यह ज़िन्दगी की शाम
अजब सा सोच है
कभी है होश
कभी खामोश है |
कभी थे स्वाद के चटकारे
चमकती आँखों के नज़ारे
पर सब खो गये गुम हो गये
खामोश फ़िजाओं में हम खो गये |
कभी था केनवास रंगीन
जो अब बेरंग है
मधुर गीतों का स्वर
बना अब शोर है
पर विचार श्रंखला में
ना कोई रोक है
और ना गत्यावरोध है |
हाथों में था जो दम
अब वे कमजोर हैं
चलना हुआ दूभर
बैसाखी की जरूरत और है
अपनों का है आलम यह
अधिकांश पलायन कर गये
बचे  थे जो
वो कर अवहेलना
निकल गये
और हम बीते कल का
फ़साना बन कर रह गये |

आशा

07 दिसंबर, 2009

अतीत


चुकती ज़िन्दगी की अन्तिम किरण
सुलगती झुलसती तीखी चुभन
पर नयनों में साकार
सपनों का मोह जाल
दिला गया याद मुझे
बीते हुए कल की |
यह पीले सूखे बाल सुमन
श्रम से क्लांत चले उन्मन
इस कृष्ण की धरा पर
नीर क्षीर बिन बचपन
दिला गया याद मुझे
उजड़े हुए वैभव की |
नव यौवन स्वर की रुनझुन
बदला क्रन्दन में स्वर सुन
यह दग्ध ह्रदय
जलती होली सा आभास
दिला गया याद मुझे
होते हुए जौहर की |
कहाँ गया बीता वैभव
कहाँ गया अद्भुत गौरव ?
क्यों सूनी है अमराई ?
कोई राधा वहाँ नहीं आई
क्यों देश खोखला हुआ आज ?
इन सब का उत्तर कहाँ आज ?
केवल प्रश्नों का अम्बार
दिला गया आभास मुझे
रीतते भारत की |

आशा

06 दिसंबर, 2009

कुछ क्षणिकाएं

(१) उम्र ने दी जो दस्तक तेरे दरवाजे पर ,
तेरा मन क्यों घबराया ,
इस जीवन में है ऐसा क्या ,
जिसने तुझे भरमाया ,
अब सोच अगले जीवन की ,
मिटने को है तेरी काया|
(२) तेरा मेरा बहुत किया ,
पर सबक लिया न कोई ,
शाश्वत जीवन की मीमांसा ,
जान सका न कोई ,
धू धू कर जल गई चिता ,
पर साथ न आया कोई |

आशा