राजा मथुरा का कंस था दुष्ट अधिक
बहिन देवकी का ब्याह होते ही
उसे डाला कारागार में
हुई थी भविष्यवाणी क्यों कि
देवकी
संतान करेगा अंत उसका|
यही संताप रहता
उसके मन में
जैसे ही गोद भरती बहिन की
मार देता उसके बच्चे को |
सात संतान जन्म लेते ही
काल कलवित हुईं
आठवी संतान जन्म की
थी प्रतीक्षा बेसब्री से |
जब जन्म हुआ बालक का
स्वतः ही खुले द्वार कारागार के
वासुदेव ने प्रस्थान किया बालक संग
बरसते पानी में
जमुना थी उफान पर
पानी ऊपर तक आया
चरण छुए मोहन के
और जल उतर गया बाढ़ का |
मित्र नन्द जी के घर जन्मी थी पुत्री
यशोदा ने बदला बच्चों को आपस में
कन्या को कोई भय न था कंस से
जब कन्या जन्म की सूचना मिली कंस को
उसे भी ले जाया गया मारने को |
कंस ने यह तक न सोचा
कि बेटी से भय कैसा
पछीट दिया उसे जमीन पर |
तभी बिजली कड़की आसमान में हुई
तुम्हारे संहारक ने जन्म ले लिया है
सुन कंस की नींद हुई हराम |
उसे हर नया जन्मा बच्चा संहारक दिखा
हाल में जन्में बालकों को मौत के घाट उतरवाया
सोचा अब तो कोई भय न होगा |
वृन्दावन में मन मोहन ने
मां गोद में यशोदा की बचपन बिताया
माखन खाया मित्रों को खिलाया |
धेनु चराईं बन्सी बजा कर मोहा सब को
कान्हां के शोर्य की चर्चा पहुंची मथुरा तक
कंस के कानों में|
बहुत अराजकता थी मथुरा में कोहराम मचा था
भेजा सन्देश ऊधव के संग
कान्हां को बुलवाया |
ग्वाल वाल हुए उदास
गोपियाँ रोईं जार
जार
जल्दी आने का वादा कर
कृष्ण
चले ऊधव संग |
ऊधव का ज्ञान धरा रह गया
गोपियाँ न शांत हुई तब भी
मन ही मन ऊधव को कोसा
बारबार वादा लिया माधव से
जल्दी बापस आने का
उनका प्यार न बांटने का
मथुरा की सुध लेने को बहुत हैं
प्रजा सुखी करने को कई हैं
उनके यही रहा मन में |
आशा