31 अगस्त, 2021

अपना लिया




मन से सोचा

दिल से दोहराया

इतना प्यारा

फिर भी न अपना

घर दिल का

रहा कलुष भरा

स्वच्छ न हुआ

न थी दूरी उससे

                जो  तब रही

                व्यवहार सतही

करते रहे  

दिखावा  रहा वह 

     अपनाया है      

दिल से दिल मिला 

 अपना लिया 

पूरी श्रद्धा  से 

गैरों सा व्यवहार 

उससे  किया

यह न्याय कहाँ है 

देरी से सही

जब समझ आया

स्वीकार किया

नकारा तक नहीं 

 भ्रम नहीं है 

प्यार मन से होता

 दिखावा नहीं

 जज्वा मन का रहा 

    अब समझ आया

                      आशा                                                                                                                                        -

  


11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 31 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-09-2021) को चर्चा मंच   "ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत"  (चर्चा अंक- 4174)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  3. प्यार मन से होता

    दिखावा नहीं

    जज्वा मन का रहा

    अब समझ आया

    सटीक.... सुंदर सृजन....

    जवाब देंहटाएं

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